SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७२ असमर्थ जे देखे तेहना पडे पराण ॥५०॥ बीजो मुरल हिव बीजो मूरख पुर राय, जिणे चित्र सभा आपी सबि हुंते समभाय, बीजा बहु परिवारे एकलो माहरो तान, जर जीरण निर्धन दुर्बल जेहनो गात । जुगताजुगतो जिणे न विचार्यो त्रीज़ो मूरख एह, चौथो तुं जे लेवा बंछे मोरपीछ सम रेह। संभली तेहनी बचन चातुरी देखी लावन रूप, प्रेमराग रंजित मन वंछे, परिणवा तसु भूप्र॥५१॥ तातने जिमाडी कुमारी निय घरे जाय. संत्रीसर सनमुख चित्रंगद पूछ्यो राय, परणाचो कनकमंजरी वलतो बोले, अम्हे चित्रक निर्द्धन/तुम्हे नरपति किम तोले, राजभार झाली न सकीनें नृप धने गेह भरावें, रूडें मुहरते महा महोछवे नृपनें ते परणावे । तेहने छ आवास रायनें बहु राणी परिवार, वारे एक दिवस एक पासे भोगवे भोग उदार ॥५२।। बारो तिणि दिवस क्नकमंजरिने दीधो, पहिर्या तनु मंडण अलंकार सवि कीधो । इण अवसरे जित्शत्रु नरूपति आव्यो तिणे ठाम, पल्यंकें बेटो सुखदायक अभिराम । राणीए मयण सीखवी आवें राय जिवारें, नरपतिने संभलावा पूछे जे मुझनें कथा तिवारे । भणे मेणिया नृप जापोटें कहो तां एक कहाणी, निद्रा दे रायने आववा कहिम्युं पछि कहे राणी ॥५३॥ ( चोपाइ:- ) कपट नींद्र भरि पोडे राय, मयूणा भणे कथा कहो माय । सुण वसंतपुरि वरूण गिहथ्थ, देहरी तिण कारी छ
SR No.032080
Book TitleJain Ras Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandra Maharaj
PublisherGokaldas Mangaldas Shah
Publication Year1930
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy