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________________ एक हथ्थ ॥५४॥ चारहाथनो ते माहें देव, थाप्यो तेहनी सारे सेव । मयणा भणे एम किम होय, जुगता जुगति विचारिजोय ॥५५॥ कहिमुं प्रभातें राणी कहे, हिवं अवसर निद्रा तुं वहें । बीजे दिन नृप तिहां आवेइ, मयणा वली कथा पूछेइ ॥५६॥ चार हाथ तमु देवह तणे, पूण न लंब पणे राणी भणे। पूछे वली कहो काइ वात, जांलगि उठे पृथवी तात ॥५७॥ अइविमाहि तरू मोटो एक, पान फूलफल. साख अनेक । सण तम छाया किमे न होइ,मयणा कहे कां भाषो सोइ ॥५८॥ प्रकाहिसं प्रभातेइं राणि कहे० ॥१९॥ ते तरू हुँतो खाड मझार, रतिह रवि किरणह नहु पेसार । तिण कारण तेह छाया नहीं, एह बात कोइ समझे नही ॥६०॥ तव मयणा मन अचरिज धरे, वारंवार प्रसंसा करे। पूछे कहो वली कांइ वात, जां लगी उठे पृथ्यीतात ॥ ६१ ॥ एक उंट जइ अटवी चरे, आघो पाछो चिहुं दिसि फिरें। तिकां एक बोउलरूख पखेइ, तिहनें खावा काजे अपेखेइ ॥३२॥ विहुंदिसि तेय प्रसारे खंध, पुणन लहें], तेहनो संबंध । करे मूत्रमल तमु सिरि सोइ, मयणा भणे एम किम होइ ॥ ६३ ।। कहिमुं प्रभाते० ॥६४॥ हुँतो बाऊल ते), कूआमाहि, मुख नहु तिण तिहां पुहतो थाइ। एम करतां बोल्या छमास, राजा मोह्यो बुद्धि विलास ॥६५॥ तब तमु सोक एकठी मिले, तमु विणासपरे मन अटकले। कहे अहो राजा वस को, जिणसुं अंतेउर परिहयो ॥६६।। राचे राउ कमीण जात, गुणदूषणनी न लहे भात । राज काज किणवार न करें,
SR No.032080
Book TitleJain Ras Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandra Maharaj
PublisherGokaldas Mangaldas Shah
Publication Year1930
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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