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________________ ण्यो राते वास घरे सूअंत, सुप्रभातें जिनपतिमानें बेव मंत। नृप बेठो कुमारी भाषे/पुवचरित, मुण खितिपईठ पुरे राजा थ्यो जितशत्रु । तो तेरे चित्रसभां संडावे राज वेहची ो. समभाग, चीतराने राय नहि जोयो निबल सबलनो लाग । एक चित्रंगद नामें चीतरो करें चित्र अतिफार, तेहने कनकमंजरी बेटी जुव्वणवय अवतार ॥४८॥ दिनप्रति ते ल्यावे. भात एकण प्रस्तावे, लेइ भात पिताने राजपंथे सा आवे । जणसंकुल मारग पुरुष एक असवार, घोडो दोडावें उरें परें बहुवारः।। कुमरी दुखे भातलेइ जाय तात आवती देखी, देह चिंता करवाने चाल्यो आव्यो भात उवेखी । कौतिग मोर पंख आलेखे नृप आवि तिहां जोय, सुंदर पीछेसुं कहि नरपति लेवा नींचो होय ॥४९॥ ( पांडुवर्धन नगर सिंहरथ राजा, चित्रकर पुत्री कनकमंजरी, वैताढ्य पर्वते, तोरणपुर नगरे दृदशक्ति विद्याधनी पुत्री कनकमाला कतकतेज भाइ, वासव विद्याधरे अपहरी, ११ योजन प्रमाण अटवी तिहा पर्वत सिखरे सप्तभूमिक आवासे राखी ते सिंहरथ राजा परणी वारंवार पर्वते आवे जाय तेह भणी नगाती राजानो नामहुवो) सहसातकारे नख' धरणी लागी भाजे, नृप विलखोथइ चित्त जोवे मनमाहे लाजे । कुमरी इसि बोले डगे खाट त्रिहुं पायें, चोथो मूरख मिलियो हिव निश्चल थाये । पूछी राय हसी कहे कुमरी एक माहरो तात, तनु चिंताएं जाय तिवारें शीतल थायें भात । बीजो राजपंथे हय दोडे न गिणे बाल गिलाण, नारी नर
SR No.032080
Book TitleJain Ras Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandra Maharaj
PublisherGokaldas Mangaldas Shah
Publication Year1930
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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