SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दुख्खे भर्यो । होइ एक तो सवि सुखलहे, नारी वलयतणी परे कहे ॥८१॥ तो जइए दुखथी छुटिस्युं, आरंभ परिग्रह तो {किस्युं । एम चिंती निसि मृतो जाम, निद्रा खरी उपनी ताम ८२॥ कातिक पूनिम अछे तिवार, सुपने एक देखे नृपसार । मेरुउपरे करिखंधे रुढ,नंदितूररवे पडिबुद्ध ॥८॥ रात विहाणी नाठोरोग महिणानो मने ये उपयोग। कइये मेरु इस्यो में दिठ, एम चिंतवि संवेगे पइठ ॥८४॥ रूडे ध्याने जातिसंभरी, पूरवभवसंजमेसिरिवरी । पुप्फोत्तरसुरकप्पें गयो, रिद्धिवंत बूंदारक थ्यो ॥८५। जिनमहिमा करवा आवियो, तब ..मंदर दीठो भावियो। थ्यो संबुद्ध संवेगें खरे, संयम लेवाने अणुसरें ॥८६॥ इसे थयो कोलाहलतणो, जाणवो जोग राय नमितणो । नारि कुटुंब सह झुरंत, नमि एकंत भावन भावंत ।। नमिनो मन परखेवा वली, विप्ररूपे इंद आवे रली। वचन कहीस्ये आगले जेय, मिनेंसूरपति पूछे.तेय ।।८८॥ मिथला नयरि कोलाहल आज, कहो कांइ सुणिये रिषिराज । विलवे लोभकरे आनंद, चोक चाचरे मिलि जनद्वंद ॥८९॥ एय वचन मुणिवरे संभल्यो, कारण हेत करि संकल्यो। तदनंतर बोले रिषिराइ, इंद्रप्रतें धरि समता भाइ ॥९०॥ मिथला नयरि महीधररिद्ध, तेह एक वृक्ष मुगुणे समृद्ध । चैत्यसहितकृत पूजो पाय, मणहर मुगुण मुसीतलछाय॥११॥ महावाय ते कांपें जिसें,पंखी तो नासे दहदिसें। अशरण अनें सही अत्राण,तिण आक्रंद करे सपराण ॥९२ सजनकोलाहल पंखी साद, तरु समान जगे नमि जसवाद ।
SR No.032080
Book TitleJain Ras Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandra Maharaj
PublisherGokaldas Mangaldas Shah
Publication Year1930
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy