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राय तुझ भाइ । सहु पूछयो तिण विरतंतरे, अभिमाने न नृष उपसंत ॥ ७० ॥ तत्र जाइ नयर मझाररे, महासती निजें परिवारे | रायगणि पहुती जामरे, परिवारे ओलखी ताम् ॥ ७१ ॥ चंद्रजस नृप लागें पाएंरे, मनमाहें हरष न माइ पगे लागे मदगद वयणेंरे, अंतेउर गलते नयणे ॥७२॥ ( चोपाइ :- )
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पूछे नृप चारित्र निदान कहे महासती न करें मान । जाणी परिपूछें गर्भवात, कहो तासु परे मुझने मात ॥७३॥ कड़े मात आव्यो झझवा, ते तुम्ह लघु बंधव जाणिवा । तत्र राजा मन हरषें भय, भाइ सनमुख जोवा नीसये ॥ ७४ ॥ देखि सहोदर नमि आवतो, तसु सनमुख चाल्यो मलपतो । करि प्रणाम बंधव पय लग्ग, एकठ थयो कुटुंबह वग्ग ||७५ || चंद्रजसे दियो नमिनें राज, नमि पालें बिहुं द्वेसह राज । चंद्रजसनप चारित्र आदरे, तपकरतो चिहुंदिसि संचरे ॥७६॥ नरपति देहिथयो एकवार, जास न कोइ पामे पार । दाघज्वर छम्मास प्रमाण, फुरे नउ सहु मंत्र विनाण || ७७|| चंदन घसे मिली सविनार, माहें शीतलद्रव्य सुवार । हेमचूड घसतां खलकंत, राय श्रवणे तेन सुहावंत || ७८ || एम गिणि एक चूड करधरे, चंदन से उपक्रमे खरे | पूछे नृप नहु खलकें चूड, कांइ ते नारि न बोले कूड ॥ ७९ ॥ वलय एक अम्ह हाथ रहे, बीजी उतारी एम कहे । ए सुणि दुखभर चिंते भूप, सहि संसारह एह सरूप ॥८०॥ जां बहू परिवारें परिवर्यो, तां थांसे घणा