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________________ ( ढाल-चोपाइ:-) कन्या नाम अंजनामुंदरी, लक्षण व्यंजन लावण्य भरी। कन्याना पख बे निर्मलां, चंद्रकला जिम चडती कला ॥७१॥ नवजोवन ते थइ रमणीक, जाणे अमृतनदीनी नोंक । कुमली कणयर कंबा जिसी, अंगे कोमल दीपे तिसी ॥७२॥ सीस शिखर उन्नत आकार, सोल कला ससीहर सुखसार । सरली खिली कंठे उछाह, गंग यमुन सरसति प्रवाह ॥७३॥ नेत्र कमलदल सोहे चंग, नासा गरुड चांच जिम तुंग । अधर विद्रुमना रंगसमाण, जाणे हर्या मृग लोयण बाण ॥७४॥ कुंडल पहेर्या काने अखंड, वीसिगतनु सम वेणीदंड । भमहि दंडनो वक्राकार, जाणे इंद्र धनुष अवतार ॥७॥ निलवट दीपे आधांचंद, मांसल उन्नत खंध, अमंद ।दंतु श्रेणी दाडमनी कली, पदम पत्र जिव्हा पातली ।।७६॥ हृदय विशाल उन्नत उदार, ठविया शुभ मोतीना हार । कनक, कुंभ पयोधरनवा, जाणे लावण्य रस पूरवा ॥७७।। वाह जुगल लांबा सुकुमाल, कोमल कुसमतणी जिम माल । कनक चूडि बिहुं कर सोहिये, देखत तरुणी मनमोहीये ॥७८॥ सोहे कर पल्लव अंगुली, कटिलंक सीहनी परे वली । नाभी मंडल जेहवो कूप, साथल कदली थंभ सरूप ॥७९॥ पुष्टां जानु जिस्यो डाबडो, जंघ जुगल वर्तुल गुण वडो । कूर्म-पृष्ट जिम उन्नत पाय, कन्या एक वणि काय ॥८०॥ पाताल कन्या विद्याधरी, के इंद्राणी एह अवतरी । एहवी कुमरी हुइ सुजात, चित्त विचारे माता)
SR No.032080
Book TitleJain Ras Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandra Maharaj
PublisherGokaldas Mangaldas Shah
Publication Year1930
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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