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________________ तात् ॥८१॥ एह कन्या न घटे राखवी, परणावी जोइये वर कवी। कन्या, वरनी सरखी जोड, जो हुवे तो पहुचे कोड ॥८२॥ अतिगलो निरधन अतिशूर, दीख्या लेवा वछि क्रूर। मूरख व्यसनी वरने सुता, डाहे नवि देवी जोवता ॥८३॥ कन्या वर जोवे धन मात्र, पिता जोवे पंडित वरधात। बंधव ते हवाये थोक, सरस जिमण बीजा सवि लोक ॥८४॥ प्रभुता विद्या शील शरीर, लखमी कुल जोवन वयधीर । कन्या दीजे. एह गुण जोइ, पछे निलाडडे लख्युं ते होइ ॥८५॥ अंजनकेतु तणी कुंवरी, कन्या वात सघले विस्तरी । कुंमरीनुं छे अदभुत रूप, को कही न सके तास सरूप ॥८६॥ कुमरी वर, जोवे सुकुमाल, दानी मानी गुण सुविशाल । आप समाणो नहु आकुलो,धर्म जाण नहु ओछांछलो ॥८७|| ठाम ठामनरवर जू जूआ, उपाउ चित्ते चीतवता हुआ । कन्या केम पामीसुं एह, साची लखमी नहुं संदेह ॥८८॥ माय बाप गुरु माने गणे, देव धर्म उत्तम गुण थुणे । दीनदयाल वर्ते उपगारि, ते जर पामे उत्तम नारि ॥८९॥ दूहाःकुमरीना गुण विस्तर्या, रंज्या राजकुमार । कुमरी परणवातणा, उपक्रम करे अपार ॥१०॥ ढालः-वेलीनीःदेशदेशना राय विचारे कन्यारूप अपार, उपाय करीने जो परणीजे तो सफल अवतार । आलेखावी पोता केरुं रूप निरुपम
SR No.032080
Book TitleJain Ras Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandra Maharaj
PublisherGokaldas Mangaldas Shah
Publication Year1930
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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