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________________ पवनंजय बहुकला, सीख्यो गुणा भंडार । सूरो बलीयो साहसी, उपग्रारी उदार ॥६०॥ सप्पुरिस कंगह उवमिये, भण! कज्जे कवणेण । जिम जिम वढ्त्तण लहे, तिमतिम तमे सिरेण ॥६१।। नर नरिंदा ऋषि कुलां, वर कामिनी कमलांह । एतां आद्रिन जोइये, गुण जोइ जे तांह ॥६२।। ( ढाल-उत्तराध्ययने बोल्या सोलमेजीः-ए देशी. ) वैताब्यगिरिनी पहिली मेखलाजी, दक्षिण श्रेणियें जाणि । अंजनपुर श्रीनगर वखाणियेजी, जिनमंदिर मंडाणि ॥६३॥ पुण्यतणा फल परतख देखियेजी, जिहां छे मुखिया लोग । धण कण कंचण गढ मढ मालियांजी, पुण्ये सह संयोग ॥६४॥ पुण्य० आंकणी०॥ पापनिकंदन कुलमंडण वडोजी, धीरम मेरु गिरिंद । राज धुरंधर राज करे तिहांजी, अंजनकेतु नरिंद॥६५॥ पुण्य० साम दाम विधि भेदज दंडग्युंजी, जाणे (वार उपाय । भुजबले वेरी आण मनावीयाजी, सेवक प्रणमे पाय ॥६६॥ पुण्य० जेहनें राणी छे अंजनावटीजी, शीलें शीता : जाणि । लखमी गंगा जेहवी सरस्वतीजी, अनोपम गुणनी खाणि ॥६७। पुण्य० सुहणे देखे शुभ अंजनलताजी, राणी सेज मझार! पूरे मासे थ्ये पुत्री जिणीजी, रोगरहित अवधार ॥६८॥ पुण्य ( दूहाः ) पुत्री जाई गुणभरी, कमल गरभ सुकुमाल। जोतां त्रिपति न पामिये, दीसे रूप विशाल ॥६९।। दिवस बारमे आवीये, .. सजन जिमाड्या ताम । अंजनासुंदरी एहवो. दीधुं कुंवरी जाम
SR No.032080
Book TitleJain Ras Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandra Maharaj
PublisherGokaldas Mangaldas Shah
Publication Year1930
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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