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________________ छहढाला मन्दिर आदि पर घोर उपसर्ग आदि आनेपर उसके दूर करनेके लिए सदा तत्पर रहना चाहिए, क्योंकि सम्यग्दृष्टि पुरुष अपनी आत्मिक, शारीरिक, सैनिक, आर्थिक और मंत्र-संबन्धी शक्तिके रहते हुए जिन-विम्बादि पर आई हुई आपत्ति, उपसर्ग, वाधादि को सह नहीं सकता, न देख-सुन ही सकता है। ___ स्वामी समन्तभद्राचार्य कहते हैं कि अपनी जैन समाजके प्रति निश्छल भाव रखकर उससे परम स्नेह करना, पदके अनुसार यथायोग्य आदर-सत्कार, पूजा, प्रशंसा आदि करना वात्सल्य अंग है । यानी जिनशासनमें सदा अनुराग रखना वात्सल्य है।। ७ वात्सल्यं नाम दासत्वं सिद्धार्ह द्विम्बवेश्मसु । संबे चतुर्विधे शास्त्रे स्वामिकार्येषु भृत्यवत् ॥ ८०७ ।। अर्थादन्यतमस्योच्चैरुद्दिष्टेषु स दृष्टिमान् । सत्सु घोरोपसर्गेषु तत्परः स्यात्तदत्यये ।। ८०८ ।। यद्वा न ह्यात्मसामर्थ्य यावन्मंत्रासिकोशकम् । तावद्दृष्टु च श्रोतु च तद्बाधां सहते न सः ॥ ८०६ ॥ पंचाध्यायी अध्याय । * स्वयूथ्यान्प्रति सद्भावसना यापेतकैतवा । प्रतिपत्तियथायोग्यं वात्सल्यमभिलप्यते ।। १७ ॥ रत्नकरंडश्रावकाचार जिनशासने सदानुरागता वात्सल्यम् । भाबपाहुड टीको गाथा नं ७७ ।
SR No.032048
Book TitleChhahadhala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit, Hiralal Nyayatirth
PublisherB D Jain Sangh
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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