SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * नमः सिद्ध ेभ्यः * श्री पं० दौलतराम विरचित छहढाला प्रथम ढाल सोरठातीन भुवनमें सार, वीतराग -विज्ञानता । शिवस्वरूप शिवकार, नमहुं त्रियोग सम्हारिके ॥ १ ॥ अर्थ — तीनों लोकोंमें वीतराग-विज्ञानता ही सार है, वही शिव स्वरूप है और शिवको करने वाली भी है, ऐसी उम्र वीतरागविज्ञानताको मन, वचन और काय ये तीनों योग संभाल करके नमस्कार करता हूँ । विशेषार्थ - यद्यपि प्रत्येक वस्तु अपने स्वरूपकी अपेक्षा सारयुक्त ही है, तथापि यहां 'सार' पदसे अभिप्राय उस प्रयोजन भूत पदार्थ ते है, जो संसारके राग-द्वेषरूपी भयंकर दावानलमें निरन्तर जलते और असह्य यातनाओं को सहते हुए प्राणियोंके
SR No.032048
Book TitleChhahadhala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit, Hiralal Nyayatirth
PublisherB D Jain Sangh
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy