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________________ इस ग्रन्थका निर्माण वि० सं० १८६१ में हुआ है । इस प्रकार व्रज-भाषाकी अन्तिम रचनाओं में छहढाला भी समझना चाहिये । इसकी उपयोगिता अनुभव करके इसको प्रायः सभी जैनपाठशालाओं और जैन- परीक्षालयोंके पठनक्रममें स्थान दिया गया है । श्रीमान् पं० जिनदासजी न्यायतीर्थ सोलापुरने मराठीभाषा में इसका छन्दोबद्ध अनुवाद किया है । इस छहढालाकी भाषा टीका सबसे पहले स्व० श्रीमान् ब्रह्मचारी शीतलाप्रसादजीने की थी, जो कि अनेक बार छप चुकी है । फिर पं० सुमेरचन्द्रजी न्यायतीर्थ 'उन्निनीषु' देहली, पं० भुवनेन्द्रजी 'विश्व' जबलपुर तथा पं० मोहनलालजी शास्त्री, मलहराने भी आवश्यक सुधार के साथ विद्यार्थियों के लिये अधिक उपयोगी बनाने की दृष्टिले भाषा टीका की है । किन्तु ये स्वाध्यायप्रेमियोंके लिये उतनी उपयोगी नहीं है । इस कमीको करने के पूरा लिये श्री पं० हीरालालजी न्यायतीर्थने प्रस्तुत टीका की है। यह टीका प्रायः ३००० श्लोक प्रमाण है । पं० हीरालालजीने धवला के भाषानुवाद में पर्याप्त भाग लिया है । उस समय आपको अनेक सैद्धान्तिक ग्रन्थोंके अवलोकनका अवसर मिला है । उस परिज्ञानका कुछ उपयोग पंडितजीने छहढालाकी इस टीका में भी किया है । स्थान-स्थान पर अपने शब्दों की पुष्टि के लिये टिप्पणी में तिलोय परणति, लाटीसंहिता आदि प्राचीन ग्रन्थोंके उद्धरण दिये हैं, इससे स्वाध्याय करनेवालोंके लिये यह टीका और भी उपयोगी हो गई है । 'मध्यम अन्तर आतम हैं जे देशबती' आगारी' (अनगारी ) ' की द्विविध समस्याका हल प्राचीन ग्रन्थोंकी साक्षीपूर्वक किया है। अजितकुमार जैन शास्त्री कलंक प्रेस, सदर बाजार, देहली |
SR No.032048
Book TitleChhahadhala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit, Hiralal Nyayatirth
PublisherB D Jain Sangh
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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