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________________ श्रावविषि/२५ जब किसी को कुछ भी उपक्रम-शस्त्र लगता है, तब उसका परिणामान्तर होता है। शस्त्र तीन प्रकार के हैं-(१) स्वकाय शस्त्र, (२) परकाय शस्त्र और (३) उभयकाय शस्त्र । (१) स्वकाय शस्त्र-खारे पानी के लिए मीठा पानी शस्त्र है। पीली मिट्टी के लिए काली मिट्टी शस्त्र है। (२) परकाय शस्त्र-पानी का शस्त्र मिट्टी है और मिट्टी का शस्त्र पानी है। (३) उभयकाय शस्त्र-मिट्टी में मिला जल निर्मल जल का शस्त्र है। ये सब सचित्त को प्रचित्त बनाने के कारण हैं। ___ कहा भी है-"उत्पल और कमल (उदकयोनि होने से) एक प्रहर मात्र भी धूप को सहन नहीं कर पाते हैं अतः अचित्त हो जाते हैं और मोगरा और जुही के फूल उष्णयोनि वाले होने से धूप में भी लम्बे समय तक सचित्त रह पाते हैं।" . "मोगरे के फूल पानी में डालने से एक प्रहर भी सचित्त नहीं रह पाते हैं और उत्पल और कमल पानी में डालने से लम्बे समय तक सचित्त रह पाते हैं।" ___ कहा है-पत्ते, पुष्प तथा सरडूफल (जिस फल की गुठली बीज तैयार नहीं हुआ हो) तथा हरी बथुप्रा आदि की भाजी तथा सामान्य से सभी वनस्पति के बीट यानी मूलनाल के कुम्हलाने पर उन्हें अचित्त समझना चाहिए। इस प्रकार बृहत्कल्प की टीका में कहा गया है। शालि आदि धान्य के सचित्त-अचित्त विभाग को समझाते हुए भगवती सूत्र के छठे शतक के सातवें उद्देशक में कहा है "हे भगवन् ! शालि, ब्रीहि, गेहूँ, जौ तथा विशेष प्रकार के जौ, ये धान्य गोदाम में भरकर रखे हों, कोठी में भरकर रखे हों, टोकरी में बाँधकर रखे हों, मंच या मंजिल पर बाँधकर रखे हों, कोठी में डालकर उसके मुख को बाहर से बन्द कर दिया गया हो, चारों ओर से लेपन कर दिया गया हो, ढक्कन से मजबूत बाँधे गये हों, ऊपर मुहर लगा दी गयी हो, इत्यादि प्रकार से संचय किये गये धान्यों की कितने समय तक योनि बनी रहती है ?" भगवान ने कहा- "हे गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से तीन वर्ष तक उसकी योनि रहती है। उसके बाद वह योनि नष्ट हो जाती है। बीज अजीव रूप बन जाता है।" पुनः पूछते हैं—“हे भगवन् ! त्रिपुट, मसूर, तिल, मूग, उड़द, वाल, कुलथी, चॅवले, तुअर, चना इत्यादि धान्यों को पूर्वोक्त प्रकार से रखने पर कितने काल तक उनकी योनि रहती है ?" "उनकी योनि जघन्य से अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट से पाँच वर्ष तक रहती है। उसके बाद पूर्वोक्त प्रकार से अचित्त हो जाते हैं।" "हे भगवन् ! अलसी, कुसुम्भ, कोद्रव, पीले चावल, वरट्ट, रालग, कोझ विशेष, सरसों, शण, मलक नाम के शाक के बीज आदि धान्यों की योनि कितने वर्ष तक रहती है ?" ___ "हे गौतम ! उनकी योनि जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से सात वर्ष तक सचित्त रहती है। उसके बाद वे बीज प्रबीज रूप हो जाते हैं।
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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