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________________ श्रावक जीवन-दर्शन / २६९ निर्माण कराया था । इसी प्रकार बाहुबली तथा मरुदेवी के शिखरों पर गिरनार पर, आबू पर, वैभारगिरि पर सम्मेतशिखर पर तथा अष्टापद पर्वत पर भरत महाराजा ने जिनमंदिरों का निर्माण कराया था और उनमें पाँच सौ धनुष प्रादि प्रमाण वाली स्वर्ण आदि की प्रतिमाएँ स्थापित कराई थीं । दण्डवीर्यं राजा तथा सगर चक्रवर्ती आदि ने उनका उद्धार भी किया था। हरिषेण चक्रवर्ती ने समस्त पृथ्वी को जिनमन्दिरों से अलंकृत किया था । ऐसा सुना जाता है कि सम्प्रति महाराजा ने अपने जीवन काल में सवालाख जिनमन्दिर बनवाये थे । इनमें सौ वर्ष के आयुष्य के दिन की शुद्धि के लिए छत्तीस हजार नवीन और शेष जीर्णोद्धार वाले मन्दिर थे । उसने स्वर्ण आदि के सवा करोड़ जिनबिम्ब बनवाये थे । आमराजा ने गोपालगिरि पर्वत पर साढ़े तीन करोड़ खर्चकर एक सौ हाथ ऊँचा मन्दिर बनवाया था, उसमें सात हाथ प्रमाण सोने का जिनबिम्ब स्थापित किया था । उस मन्दिर के मूल मण्डप में सवालाख सोना मोहर व प्रेक्षा मण्डप में इक्कीस लाख सोना मोहर का खर्च हुआ था । कुमारपाल महाराजा ने 1444 नूतन जिनमन्दिरों का निर्माण एवं 1600 मन्दिरों का जीर्णोद्धार कराया था । कुमारपाल ने अपने पिता के नाम से छिन्न करोड़ द्रव्य खर्च करके त्रिभुवन विहार नाम का मन्दिर बनवाया था, उसमें अरिष्टरत्न की 125 अंगुल ऊँची मुख्य प्रतिमा तथा बहोत्तर देवकुलिकाओं में चौदह-चौदह भारवाली चौबीस प्रतिमाएँ रत्न की, चौबीस प्रतिमाएँ स्वर्ण की व चौबीस प्रतिमाएँ चांदी की भरवायी थीं । वस्तुपाल मंत्री ने 1313 नवीन जिनमन्दिरों का निर्माण एवं 2200 प्राचीन मन्दिरों का जीर्णोद्धार कराया था और सवा लाख बिम्ब भरवाये थे । शाह ने 84 मन्दिर बनवाये थे । सुरगिरि में कोई जैनमन्दिर नहीं था । वहाँ मन्दिर बनवाने के लिए पेथड़शाह ने वीरमद राजा के प्रधान विप्र हेमादे के नाम से मान्धातापुर और कारपुर में तीन वर्ष तक दानशाला खुलवाई थी । अन्त में खुश होकर हेमादे ने पेथड़शाह को सात महल जितनी भूमि प्रदान की। उस भूमि में नींव खोदने पर मीठा पानी निकला, किसी ने जाकर राजा के कान फूके कि वहाँ मीठा जल निकला है अतः वहाँ बावड़ी बनवायी जाय, पेथड़शाह को इस बात का पता लगते ही उसने बारह हजार टंक प्रमाण नमक डलवा दिया । वहाँ मन्दिर बनवाने के लिए पेथड़शाह ने सोने से भरी बत्तीस सांडनियाँ भिजवायीं । मन्दिर की सीढ़ियों में चौरासी हजार टंक का खर्च हुआ । मन्दिर के पूर्ण होने पर बधाई देने वाले को तीन लाख टंक का दान दिया। इस प्रकार पेथड़विहार तैयार हुआ । उसी ने शत्र ु जय तीर्थ पर इक्कीस घटी सोने का व्यय कर श्री ऋषभदेव के मन्दिर को चारों ओर से सोने से मढ़कर सुवर्णाचल के शिखर की तरह सोने का बना दिया । श्री रैवताचल पर्वत पर कांचनबलानक का प्रबन्ध इस प्रकार है गत चौबीसी में उज्जयिनी नगरी में नरवाहन राजा ने केवली पर्षदा को देखकर तीसरे सागरजिन को पूछा - "प्रभो ! मैं कब केवली बनूंगा ?" प्रभु ने कहा - " आगामी चौबीसी के बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ प्रभु के शासन में तुम केवली बनोगे ।”
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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