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________________ कुछ दिनों बाद पुनः रोग बढ़ने दही में से विष दूर किया । एक बार उदयनमुनि ने अनशन स्वीकार किया। क्रमशः वे सिद्ध हुए । श्रावक जीवन-दर्शन / २६७ से वे दही लेने के लिए तैयार हुए। देव ने तीन बार उनके देवता के प्रमाद के कारण उन्होंने विषयुक्त दही खा लिया । एक मास के अनशन से उन्हें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ और कुपित हुए देव ने वीतभय नगर में धूल की वृष्टि की । देव राजर्षि के शय्यातरकु भार को सिनपल्ली में ले गया और उस गाँव का नाम 'कु' भकारकृत' रखा | उदायन राजा का पुत्र अभीचि राज्य के लिए योग्य होने पर भी राजा (पिता) द्वारा राज्य नहीं देने के कारण दुःखी हो गया और वह अपने मासी के पुत्र कुणिक के पास जाकर सुखपूर्वक रहने लगा और वहाँ श्रावकधर्म की आराधना करने लगा परन्तु पिता के पराभव के वैर की आलोचना किये बिना ही पाक्षिक अनशन से मरकर एक पल्योपम की प्रायुवाला असुरकुमार देव बना । वहाँ से वह देव महाविदेह में उत्पन्न होकर सिद्ध होगा । कुमारपाल राजा को गुरुमुख से धूल की वृष्टि से भूमिगत कपिल ऋषि द्वारा प्रतिष्ठित प्रतिमा का पता चला। धूलवाले स्थान को खोदने पर उदायन द्वारा निर्दिष्ट प्रज्ञा पत्र ( ताम्र पत्र ) के साथ वह प्रतिमा शीघ्र ही प्रगट हुई। अच्छी तरह से उसका पूजन कर भव्य महोत्सव के साथ उस प्रतिमा को रहिल्लपुर पाटण ले जाया गया और वहाँ नवनिर्मित विशाल स्फटिक के मन्दिर में उसने वह प्रतिमा स्थापित की । पत्र में लिखी गयी आज्ञाओं और उदायन राजा द्वारा मन्दिरव्यवस्था हेतु निर्दिष्ट गाँव-नगर आदि प्रदेशों को स्वीकार कर दीर्घकाल तक उस प्रतिमा की पूजा । उस प्रतिमा की स्थापना से चारों ओर से समृद्धि बढ़ी । इस प्रकार मन्दिर व्यवस्था हेतु जागीर आदि देने से निरन्तर पूजा और जिनमन्दिर की सुरक्षा, आवश्यक मरम्मत आदि भी आसानी से हो सकती है। कहा है- "जो व्यक्ति अपनी शक्ति के अनुसार ऐश्वर्ययुक्त जिनमंदिर का निर्माण करता है वह पुरुष दीर्घकाल तक देवगरण से अभिनन्दनीय होकर परमसुख मोक्ष को प्राप्त करता है ।" * जिन प्रतिमा मणि, स्वर्णादि धातु, चन्दन आदि काष्ठ, हाथीदाँत, पाषाण अथवा मिट्टी की पाँच सौ धनुष से लेकर अंगुष्ठ प्रमाण तक की प्रतिमा अपनी शक्ति के अनुसार करानी चाहिए। कहा है- "जो मनुष्य अच्छी मिट्टी, निर्मल शिला, हाथी दाँत, चांदी, स्वर्ण, रत्न, मारणक अथवा चन्दन की सुन्दर जिनप्रतिमा अपनी शक्ति के अनुसार बनवाता है, वह मनुष्य, मनुष्य और देव भव में महान् सुख प्राप्त करता है । " निम्ब कराता है उसे दारिद्र्य, दौर्भाग्य, खराब जाति, खराब शरीर, खराब गति, खराब बुद्धि, अपमान, रोग और शोक नहीं होते हैं । वास्तुशास्त्र में कही गयी विधि के अनुसार तैयार की गयी सुन्दर लक्षण वाली जिनप्रतिमा यहाँ भी अभ्युदय आदि दिलाने वाली है ।
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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