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________________ श्राद्धविधि / २२६ उसके बाद उस देव ने पिशाच का रूप करके चमड़ी उतारना, घात करना, उछालना, शिला पर पछाड़ना, समुद्र में डालना इत्यादि अनेक प्राणान्त प्रतिकूल उपसर्ग किये; फिर भी वह सेठ अपने ध्यान से चलित नहीं हुआ। कहा है- "दिग् गजेन्द्र, कूर्म, कुलपर्वत और शेषनाग के द्वारा धारण की हुई होने पर भी यह पृथ्वी कदाचित् चलित होती है; परन्तु निर्मल मन वाले पुरुषों का मन प्रलयकाल में भी अपने व्रत से चलित नहीं होता है ।" उसके बाद वह देव बोला - " मैं तुम पर खुश हूँ, तुम्हें जो चाहिए वह मांग लो ।" इस प्रकार कहने पर भी वह ध्यान से चलित नहीं हुआ। इससे खुश होकर उस देव ने उसके घर में असंख्य रत्नों की वृष्टि की। उसकी महिमा से अनेक लोग पर्व की आराधना करने में तत्पर हुए। उनमें भी राजा के एक धोबी, तेली व कौटुम्बिक (किसान) ने छह पर्वतिथियों में अपने-अपने प्रारम्भकार्य का त्याग किया; जबकि इन्हें राजा की प्रसन्नता पर विशेष ध्यान देना पड़ता था। वह सेठ उन तीनों को नवीन साधर्मिक जानकर पार के लिए आमंत्रण देता था और उनके साथ भोजन कर भेंट आदि में भी अमाप धन देकर उनका सम्मान करता था। कहा भी है- "माता-पिता और बन्धु वर्ग भी जो वात्सल्य नहीं दे सकते हैं, सुश्रावक उससे अधिक वात्सल्य साधर्मिक को देते हैं ।" सेठ के सम्पर्क से वे तीनों भी सम्यग्दृष्टि बने । कहा है- "जिस प्रकार मेरुपर्वत पर रहा हुआ तृण भी स्वर्णत्व को प्राप्त करता है, उसी प्रकार उत्तम पुरुषों के संसर्ग से शीलहीन भी शीलसमृद्ध बन जाता है ।" एक बार कौमुदी महोत्सव होने वाला था, तब चतुर्दशी के दिन ही राजपुरुषों ने जाकर धोबी को कहा - "आज ही राजा व रानी के वस्त्र धोने हैं ।" धोबी ने कहा - "पर्वदिनों में कुटुम्ब सहित वस्त्र नहीं धोने का नियम है । " राजपुरुषों ने कहा – “राजा की आज्ञा में नियम कौनसा ? आज्ञा भंग करोगे तो मृत्युदण्ड भी हो सकता है ।" कुटुम्बीजनों ने तथा ग्रन्य लोगों ने भी उस धोबी को बहुत समझाया । सेठ ने भी कहा" राजदण्ड से धर्महीलना न हो, इसलिए नियम में राजाभियोग का अपवाद भी होता है ।" इस प्रकार युक्ति से समझाने पर भी " दृढ़ता के बिना धर्म से क्या ?" इस प्रकार कहकर उस धोबी ने कपड़े धोने से मना कर दिया । राजपुरुषों ने जाकर राजा के कान फूंके । राजा भी बोला -- "कल उसे परिवार सहित दण्ड दूंगा ।" "परन्तु दैवयोग से उसी रात्रि में राजा को शूल की भयंकर पीड़ा उत्पन्न हुई । समस्त नगर में हाहाकार मच गया । इस बीच तीन दिन बीत गये। धर्म के प्रभाव से धोबी का नियम बच गया । उसने एकम् के दिन वस्त्र धो दिये और दूज के दिन वस्त्र मांगने पर उसने वस्त्र दे दिये ।
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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