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________________ श्रावक जीवन-दर्शन/२२७ इसी प्रकार कोई विशेष प्रसंग आ जाने से राजा ने चतुर्दशी के दिन ही उस तेली को तेल पीलने के लिए आदेश दिया। परन्तु वह भी अपने नियम में दृढ़ रहा । राजा ने कोप भी किया। परन्तु अचानक दुश्मन राजा के आगमन के कारण राजा को युद्ध के लिए जाना पड़ा, परिणाम स्वरूप उसके नियम का भी रक्षण हो गया। इसी प्रकार एक दिन राजा ने किसान को अष्टमी के दिन ही हल जोतने का आदेश दिया परन्तु नियम की दृढ़ता के कारण उसने मना कर दिया। इससे राजा को गुस्सा आ गया परन्तु उसी समय निरन्तर वर्षा हो जाने से उसका नियम सुरक्षित रह गया। इस प्रकार पर्व के नियमों का अखण्ड पालन करने के फलस्वरूप वे तीनों मरकर छठे देवलोक में चौदह सागरोपम के आयुष्य वाले देव बने । सेठ मरकर बारहवें देवलोक में उत्पन्न हुा । उन चारों के बीच में मैत्री हुई। अपने च्यवन के समय उन तीनों देवों ने सेठ देव को कहा-"पाप पहले की तरह हमें प्रतिबोध देना।" वे तीनों देव स्वर्ग से च्यवकर अलग-अलग राजकुलों में उत्पन्न हुए और तीनों बड़े राजा बने; क्रमश: धीर, वीर और हीर के नाम से वे तीनों प्रसिद्ध हुए। धीर राजा के नगर में एक सेठ को पर्वदिनों में हमेशा लाभ होता था, जबकि अन्य दिनों में हानि भी होती थी। उस सेठ ने ज्ञानी गुरु को पूछा । ज्ञानी गुरु ने कहा-"तुमने पूर्वभव में गरीबी की अवस्था में भी पर्व के नियमों का दृढ़ता से पालन किया था। जबकि अन्य दिनों में योग होने पर भी पुण्यकार्य में प्रमादी हुए थे। उसी के फलस्वरूप इस भव में यह स्थिति है।" कहा भी है--"धर्म में प्रमादी जीव जिसको लुटाता है, जिसका नाश करता है तथा हारता है वह चोर भी लूट नहीं सकता, उसे अग्नि भी नाश नहीं कर सकती तथा उसे जुए में भी नहीं हारता । अर्थात् धर्म में प्रमाद करने से महाअनर्थ होता है।" उसके बाद वह कुटुम्ब सहित पुण्यकार्यों में हमेशा अप्रमत्त रहने लगा और अपनी सर्वशक्ति से सभी पर्यों की प्राराधना करने लगा। व्यवहारशुद्धि के साथ अत्यल्प प्रारम्भपूर्वक व्यापार आदि भी दूज आदि पर्वदिनों में ही करने लगा, अन्य दिनों में नहीं। विश्वास हो जाने से सभी ग्राहक भी उसी के साथ व्यवहार करने लगे, दूसरों के साथ नहीं। इस प्रकार थोड़े ही दिनों में वह करोड़ों की सम्पत्ति का मालिक बन गया। "कौआ, कायस्थ तथा मुर्गा अपने कुल के पोषक होते हैं, जबकि वरिणक, श्वान, हाथी और ब्राह्मण अपने ही कुल का नाश करते हैं।" इस प्रकार मात्सर्य से अन्य अनार्य वणिकों ने जाकर राजा को शिकायत की कि "इस सेठ को करोड़ों का निधान मिला है।" राजा के पूछने पर सेठ ने कहा- "मैंने तो स्थूल मृषावाद और अदत्तादान का गुरु के पास नियम लिया है।" वणिकों के कहने से 'धर्मठग' मानकर राजा ने उसका सारा धन अपने महल में रखवा दिया और उसे पुत्र सहित अपने महल में रखा । सेठ ने विचार किया-"आज पंचमी पर्व होने से किसी भी प्रकार से मुझे लाभ ही होना चाहिए।"
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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