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________________ श्रावक जीवन-दर्शन/२२३ परठकर इरियावहिय प्रतिक्रमण कर गमनागमन की आलोचना कर खमासमणपूर्वक साधु की तरह स्वाध्याय करे। उसके बाद पादोनपोरिसी तक पठन, गुणन करे या पुस्तक पढ़े। फिर खमासमरण पूर्वक मुहपत्ती पडिलेहन कर कालवेला तक पूर्व की तरह स्वाध्याय करे। जब देववन्दन करने हों तब प्रावस्सही कहकर मन्दिर में जाकर देव-वन्दन करना चाहिए । फिर यदि आहार करना हो तो पच्चवखाण का समय पूर्ण होने पर खमासमण पूर्वक मुहपत्ती पडिलेहन कर खमासमण देकर यों कहे-"पोरिसी पारावहं" या पुरिमड्ड चोविहार या तिविहार जो किया हो सो कहे।। __ फिर देववन्दन कर स्वाध्याय कर घर जाना चाहिए। 100 हाथ से दूर हो तो इरियावहिय प्रतिक्रमण कर 'गमणागमणे' का पाठ बोलकर यथाशक्य अतिथिसंविभाग-व्रत का पालन करें। फिर निश्चल आसन पर बैठकर हाथ, पैर व मुख की पडिलेहना कर नवकार बोलकर रागद्वेष किये बिना भोजन करें। अथवा पूर्व सूचित स्वजन द्वारा लाया गया अन्न खायें, किन्तु भिक्षा न मांगें। फिर पौषधशाला में जाकर ईरियावहिय कर, देव-वंदन कर तिविहार अथवा चोविहार का पच्चक्खाण करें। यदि शरीरचिन्ता के लिए बाहर जाना पड़े तो 'पावस्सिअं' कहकर साधु की तरह उपयोगपूर्वक निर्जीव स्थंडिल भूमि में जाकर विधि-पूर्वक मल-मूत्र का त्याग करें। शरीरशुद्धि कर पौषधशाला में आकर ईरियावहिय कर खमासमण देकर 'गमणागमणे' की आलोचना इस प्रकार करें-"इच्छाकारेण संदिसह भगवन्, गमणागमणं आलोचेउं, इच्छं।" वसति से पश्चिम तथा दक्षिण दिशा में जाकर दिशाएँ देखकर 'अणुजाणह जस्सुग्गहो' कहकर संडासक और स्थंडिल का प्रमार्जन कर बड़ीनीति व लघुनीति को वोसिराए। उसके बाद 'निसीहि' कहकर पौषधशाला में आये । जाने-माने में विराधना हुई हो तो 'मिच्छा मि दुक्कडम्' करें, फिर अन्तिम प्रहर तक स्वाध्याय करें। फिर खमासमण देकर 'पडिलेहणं करेमि' इस प्रकार पडिलेहन का आदेश मांगें, फिर सालं पमज्जेमि' इस प्रकार पौषधशाला के प्रमार्जन का आदेश मांगकर महपत्ती पादोछन व धोती का पडिलेहन करें। श्राविका हो तो मुहपत्ती, पादोछन, साड़ी, कंचुक व चरिणया का पडिलेहन करे। फिर स्थापनाचार्य का पडिलेहन कर पौषधशाला का प्रमार्जन कर खमासमण देकर उपधि, महपत्ती पडिलेहन कर खमासमरण देकर मांडली में घटने के बल बैठकर स्वाध्याय करे। फिर वन्दन देकर पच्चक्खाण करके दो खमासमण देकर उपधि पडिलेहन के आदेश मांगकर वस्त्र-कम्बल आदि का पडिलेहन करे। यदि उपवास हो तो सर्व उपधि के बाद पहिने हुए वस्त्र का पडिलेहन करे। श्राविका हो तो प्रभात की तरह वस्त्र पडिलेहन करे। . कालवेला में खमासमणपूर्वक शय्या के अन्दर तथा बाहर बारह-बारह लघुनीति व बड़ी नीति हेतु भूमि को देखे । फिर प्रतिक्रमण करके, साधु का योग हो तो उनकी विश्रामणा करके, वन्दना करके पोरिसी तक स्वाध्याय करे। फिर खमासमण देकर 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! बहु पडिपुन्ना पोरिसी राई संथारए
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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