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________________ श्राद्धविधि/१८४ है और राजा के प्रकोप का भी भाजन बनना पड़ सकता है। राजा आदि के सामने परस्पर निन्दाचुगली करने से राजा द्वारा अपमान भी हो सकता है और दण्ड भी मिल सकता है । समान व्यवसाय वालों के बीच अनबन हो तो वह विनाश का ही कारण बनती है। कहा है-“एक पेट और पृथक् गर्दन वाले अन्य-अन्य फल की इच्छा रखने वाले भारंड पक्षी की तरह परस्पर अनबन रखने वाले लोंगों का नाश ही होता है।" .. जो लोग एक दूसरे के मर्म-स्थलों का रक्षण नहीं करते हैं, वे बांबी में रहे सर्प की तरह शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। कोई विवाद उत्पन्न हो जाय तो तराजू के समान मध्यस्थ रहना चाहिए। परन्तु अपने स्वजन सम्बन्धी तथा ज्ञातिजन के उपकार के लिए अथवा रिश्वत लेने की इच्छा से न्यायमार्ग का उल्लंघन नहीं करना चाहिए । कमजोर लोगों को चुंगी-कर व राजदण्ड आदि से हैरान नहीं करना चाहिए । कमजोर व्यक्ति को अल्प अपराध में एकदम दण्ड नहीं देना चाहिए। चुंगी, कर आदि से पीड़ित लोग परस्पर प्रीति नहीं होने से संगठन को छोड़ देते हैं। संगठन न हो तो समूह से अलग पड़े सिंह की भाँति बलवान व्यक्ति भी पराभव ही पाता है। अत: परस्पर एकता और संगठन रखना ही लाभकारी है। कहा भी है- "पुरुषों के लिए संगठन लाभकारी है और विशेषकर अपने पक्ष में। देखो, छिलकों से अलग पड़े चावल पुनः उगते ही नहीं है।" “संगठन की महिमा को देखो जिस पानी से पर्वत भी तोड़े जा सकते हैं और भूमि भी खोदी जा सकती है उस 'पानी को संगठित तृण रोक देते हैं।" अपने हित के इच्छुक को भंडारी, राज के अधिकारी, देवस्थान तथा धर्मस्थान के अधिकारी तथा अपने अधीन काम करने वाले लोगों के साथ धन-सम्बन्धी लेन-देन नहीं करना चाहिए और विशेषकर राजा के साथ तो नहीं करना चाहिए। राजा के अधिकारी आदि लोग धन लेते समय तो प्रसन्नमुख वाले होते हैं, प्रियभाषण, आसन-प्रदान, तांबूल-दान आदि बाह्य आडम्बर द्वारा अपना सौजन्य बतलाते हैं परन्तु अवसर प्राने पर जब उनसे दिया गया धन मांगा जाता है तब तिल-तुष मात्र किये गये अपने उपकार को प्रगट कर उसी समय दाक्षिण्य का त्याग कर देते हैं। यह उनका स्वभाव ही होता है। कहा भी है"ब्राह्मण में क्षमा, माता में द्वेष, वेश्या में प्रेम और अधिकारी में दाक्षिण्य-ये चारों हानिकारक हैं ।” पैसे देना तो दूर रहा, बल्कि झूठे दोषों का आरोप लगाकर राजा आदि द्वारा दण्ड भी करा सकते हैं। "झूठे दोषारोपण करके भी धनी व्यक्ति को लोग परेशान करते हैं, जबकि गरीब व्यक्ति ने अपराध किया हो तो भी उसे कोई हैरान नहीं करता है।" सामान्य क्षत्रिय के पास से भी जब धन मांगा जाता है, तब वह तलवार बतलाता है तो फिर स्वभाव से ही क्रोधी राजाओं की तो क्या बात करें?" . इस प्रकार समान व्यवसाय वाले लोगों के साथ उचित व्यवहार की तरह असमान व्यवसाय वाले लोगों के साथ भी उचित व्यवहार करना चाहिए ।
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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