SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रावक जीवन-दर्शन/१८३ था। किसी एक गाँव में रहने वाले साठ हजार चोरों ने मिलकर यात्रा करने जाते हुए संघ पर लूट करने का काम शुरू किया, उस वक्त वहाँ जाकर उसने भरसक प्रयत्न से चोरों का उपद्रव बन्द कराया; जिससे उसने बड़ा भारी पुण्य प्राप्त किया। अपनी भूल होने पर गुरुजन कोई शिक्षा दें तो उसे 'तहत्ति' कहकर स्वीकार करना चाहिए और प्रमाद से गुरुदेव की कोई भूल हो जाय तो उन्हें एकान्त में- "हे भगवन् ! सच्चरित्रवान् ऐसे आपके लिए क्या यह उचित है ?"- इस प्रकार कहना चाहिए। गुरुदेव के आने पर उनके सम्मुख जाना चाहिए। गुरु के आगमन पर खड़े हो जाना चाहिए............उन्हें आसन देना चाहिए। उनकी मालिश करनी चाहिए और शुद्ध वस्त्र, पात्र, आहार आदि प्रदान करने चाहिए। देशान्तर में जाने पर भी गुरु के सम्यक्त्व-दान आदि भावोपकार को सदैव याद रखना चाहिए; इत्यादि गुरुजन सम्बन्धी औचित्यपालन समझना चाहिए। क. नगरवासियों के प्रति औचित्य-पालन के ___ जहाँ स्वयं रहते हों, उसी नगर में जो रहते हैं और अपने समान आजीविका चलाते हैं, वे नागरिक कहलाते हैं। अब उनसे सम्बन्धित औचित्य बतलाते हैं । नगरवासियों के सुख-दुःख में सहभागी बनना चाहिए अर्थात् उनके सुख में सुखी और उनके दुःख में दुःखी बनना चाहिए । उन पर कोई आपत्ति आ जाय तो उसे अपनी ही आपत्ति समझकर उसे दूर करने का प्रयास करना चाहिए और उनके उत्सव में भाग लेना चाहिए। यदि इस प्रकार एकदूसरे के बीच सहयोग न रहे और किसी मुख्य प्रसंग पर राजा के पास जाना पड़े तो भी अलग-अलग न जायें बल्कि सब मिलकर एक साथ जायें। महत्त्वाकांक्षा के कारण अलग-अलग जाने पर परस्पर वैमनस्य आदि दोष पैदा होते हैं। अतः तुल्य होने पर भी परस्पर मिलकर यवन की तरह किसी एक को अग्रणी बनाकर ही जाना चाहिए। परन्तु निम्न निर्नायक टोले की भाँति न जायें। एक बार किसी राजा की सेवा के लिए 500 मनुष्य उपस्थित हुए। राजा के आदेश से उनकी परीक्षा के लिए मंत्री ने उन्हें सोने के लिए एक ही पलंग दिया। वे सब उस पलंग पर सोने के लिए परस्पर विवाद करने लगे। अन्त में वे उस पलंग को बीच में रखकर उसकी ओर पैर करके सो गये। परन्तु उन्होंने अपने में से किसी एक को बड़ा मान कर पलंग पर न सोने दिया। यह जानकर राजा ने उन सबको निकाल दिया। इस दृष्टान्त को ध्यान में रखकर संगठित होकर ही राजा आदि के पास जाकर विज्ञप्ति आदि करनी चाहिए। कहा भी है-"असारभूत वस्तुएँ भी समूह में होने पर विजय का कारण बनतो हैं । तिनकों के समूह से बना हुआ रस्सा हाथी को भी बाँध देता है।" मंत्रणा हमेशा गुप्त रखनी चाहिए। गुप्त बात प्रगट होने पर कार्य में आपत्ति पा सकती
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy