SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बाढविषि/१५२ समिति से कहना चाहिए। राजा और गुरु आदि के पूछने पर तो सभी सही बात बता देनी चाहिए। कहा भी है-"मित्रों के साथ सत्य बोलना चाहिए। स्त्रियों के साथ प्रिय बोलना चाहिए। दुश्मन के साथ झूठ भी मधुर वचन से बोलना चाहिए और स्वामी के साथ अनुकूल सत्य बोलना चाहिए।" सत्य बोलने में पुरुष की पराकाष्ठा है; क्योंकि उसी से विश्वास पैदा होता है। * सत्यवादी महणसिंह 2 दिल्ली में महरणसिंह नाम का सेठ था। वह अत्यन्त ही सत्यवादी था। उसकी ख्याति सुनकर उसकी परीक्षा के लिए बादशाह ने उसे पूछा- "तुम्हारे पास कितना धन है ?" सेठ ने कहा-"मैं हिसाब देखकर बताऊंगा।" सेठ ने अपना सब हिसाब देखकर राजा को कहा-"मेरे घर में अनुमान से चौरासी लाख टंक हैं।" राजा ने सोचा-“मैंने तो कम सुना था, इसने तो ज्यादा बता दिया" सेठ की सत्यप्रियता को देखकर राजा ने उसे अपना कोषाध्यक्ष नियुक्त कर दिया। * सत्यवादी भीम सोनी * खम्भात नगर में श्री जगच्चन्द्र सूरिजी का शिष्य भीम नाम का सोनी था, जो विषम परिस्थिति में भी झूठ नहीं बोलता था। एक बार शस्त्रधारी सैनिकों ने मल्लिनाथ प्रभु के मन्दिर में से भीम श्रेष्ठी को पकड़कर कैद कर लिया। अपने पिता को बन्धनमुक्त कराने के लिए भीम के पुत्र चार हजार नकली टंक लेकर उन शस्त्रधारियों के पास आये। उन्होंने उन टकों की परीक्षा भीम के पास करायी। भीम के सत्य बोलने पर वे शस्त्रधारी खुश हो गये और उन्होंने भीम को बन्धन मुक्त कर दिया। * मित्र बनायें आपत्ति में सहयोग पाने के लिए समान धर्म, धन और प्रतिष्ठा आदि गुण वाले, बुद्धिवाले और निर्लोभ व्यक्ति को अपना मित्र बनाना चाहिए। रघु काव्य में कहा है-"राजा का मित्र यदि शक्तिहीन हो तो आपत्ति में उसकी सहायता नहीं कर सकता और अधिक बलवान हो तो वह स्पर्धा किये बिना नहीं रहेगा, अतः मध्यम शक्ति वाले के साथ ही राजा को मैत्री करनी चाहिए।" अन्यत्र भी कहा है "जिस आपत्ति में भाई, पिता और अन्य स्वजन भी नहीं ठहर पाते, ऐसी स्थिति मे आपत्ति को दूर करने के लिए सन्मित्र ही सहायता करते हैं।" "हे लक्ष्मण ! अपने से अधिक समृद्ध के साथ मैत्री करना उचित नहीं है क्योंकि ऐसे व्यक्ति के घर जाने पर अपना कोई गौरव नहीं होता है और समृद्ध व्यक्ति के अपने घर आने पर अपने धन का क्षय ही होता है।" उपर्युक्त बात युक्तियुक्त होने पर भी कदाचित् धनवान व्यक्ति के साथ प्रीति हो तो अशक्यकार्य
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy