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________________ श्रावक जीवन-दर्शन/१५३ भी सिद्ध हो जाते हैं, यह फायदा बड़ा है। कहा है-"स्वयं को ही समर्थ होकर रहना चाहिए अथवा किसी समृद्ध व्यक्ति को अपना बनाना चाहिए, जिससे कोई भी कठिन कार्य सिद्ध हो जाता है। काम निकालने का इसके सिवा अन्य कोई उपाय नहीं है।" अपने से छोटे व्यक्ति के साथ भी मैत्री करनी चाहिए, क्योंकि अवसर प्राने पर छोटे व्यक्ति भी बड़ी सहायता करते हैं। पंचाख्यान में कहा है-"बलवान और कमजोर दोनों के साथ मैत्री करनी चाहिए । जंगल में बंधे हुए हाथी के यूथ को एक चूहे ने मुक्त करा दिया।" कई बार छोटे व्यक्तियों (जीवों) से साध्य कार्य बड़े व्यक्तियों के लिए भी असम्भव हो जाता है। सुई का काम तो सुई ही करती है वहाँ तलवार क्या काम आती है ? तृण का कार्य तृण से ही होता है, हाथियों से नहीं। ग्रन्थकार ने कहा भी है-"तृण, धान्य, नमक, अग्नि, काजल, गोबर, मिट्टी, पत्थर, राख, लोहा, सुई, औषधि चूर्ण तथा चाबी इत्यादि वस्तुएँ अपना कार्य स्वयं ही करती हैं। इन वस्तुओं का कोई विकल्प नहीं है।" ॐ दुर्जन से व्यवहार के दुर्जनों के साथ व्यवहार करते समय भी वचन का दाक्षिण्य नहीं छोड़ना चाहिए। कहा है "सद्भाव से मित्र के मन को, सन्मान से बन्धुनों के चित्त को, प्रेम से स्त्री के चित्त को, दान से नौकर के चित्त को और अन्य लोगों को दाक्षिण्य से वश में करना चाहिए।" कभी-कभी अपने कार्य की सिद्धि के लिए दुर्जनों को भी अग्रणी बना देना चाहिए । ग्रन्थकार ने कहा है-"बुद्धिमान पुरुष कभी दुर्जनों को भी आगे कर अपना कार्य साध लेते हैं। क्लेशरसिक दाँतों को आगे कर जीभ अपना कार्य कर लेती है।" ____ "काँटों से भी सम्बन्ध किये बिना निर्वाह सम्भव नहीं है। खेत, ग्राम, घर और बगीच आदि की रक्षा उन्हीं के अधीन है।" लेन-देन का व्यवहार है जिनके साथ अत्यन्त प्रीति हो, उनके साथ अर्थ-सम्बन्ध नहीं रखना चाहिए। कहा है "जहाँ पर मैत्री सम्बन्ध की इच्छा न हो वहीं पर अर्थ-सम्बन्ध करना चाहिए । जहाँ प्रतिष्ठाभंग का भय हो वहां खड़े नहीं रहना चाहिए।" सोमनीति में भी कहा है-"द्रव्य-सम्बन्ध और सहवास जहाँ हो वहाँ झगड़ा हुए बिना नहीं रहता है ।" "साक्षी के बिना मित्र के घर पर भी न्यास नहीं रखनी चाहिए और मित्र के द्वारा किसी को अपनी रकम भी नहीं भेजनी चाहिए। क्योंकि अर्थ ही अविश्वास का मूल है और जहाँ अर्थ (धन) का लेन-देन नहीं है, वहीं विश्वास बना रहता है।" कहा भी है-- "विश्वसनीय और अविश्वसनीय दोनों का विश्वास नहीं करना चाहिए। विश्वास से उत्पन्न भय मूल से ही नष्ट करता है।" गुप्त रखे गये न्यास से मित्र का भी मन ललचा जाता है। कहते भी हैं-"अपने घर में
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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