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________________ श्रावक जीवन-दर्शन / १२३ 5 गुरु भगवन्त को गोचरी-निमन्त्ररण फ्र जिनवाणी के श्रवण के बाद साधु भगवन्त की सेवा आदि के लिए उनकी संयमयात्रा श्रादि की सुखसाता पूछनी चाहिए। वह इस प्रकार "हे भगवन्त ! श्रापकी संयमयात्रा सुखपूर्वक चल रही है ? गत रात्रि सुखपूर्वक व्यतीत हुई ? आप शरीर से स्वस्थ हैं ? आपके शरीर में कोई पीड़ा तो नहीं है ? हमारे योग्य कोई कार्य ? क्या किसी वैद्य अथवा श्रौषध का प्रयोजन है ? क्या आहार के विषय में किसी पथ्य प्रौषधअनुपान की आवश्यकता है ?" इस प्रकार के प्रश्न करने से महानिर्जरा होती है । कहा भी है / "गुरु के सम्मुख जाने से, वन्दन करने से, नमस्कार करने से तथा सुखसाता पूछने से अनेक वर्षो में संचित किये हुए पाप एक क्षरण में नष्ट हो जाते हैं ।" पहले गुरुवन्दन के प्रसंग पर 'इच्छकार सुहराई सुहतपसरीरनिराबाध' इत्यादि प्रश्न करने पर भी यहाँ सम्पूर्ण जानकारी के लिए और उसके उपाय के लिए विशेष पृच्छा की जाती है । अतः गुरु के चरणों में प्रणाम कर 'इच्छाकारि' इत्यादि पाठ बोलना चाहिए । उस पाठ का भावार्थ इस प्रकार है "हे भगवन् ! मुझ पर कृपा कर अचित्त और कल्प्य आहार, पानी, खादिम और स्वादिम वस्तु, वस्त्र, पात्र, कम्बल, श्रासन तथा कार्य समाप्ति के बाद वापस लौटाने योग्य यानी मर्यादित समय के लिए जो उपयोग में लिये जाते हैं; ऐसे पाट, पाटला, शय्या, संथारा, औषध, भैषज्य आदि ग्रहरण कर अनुग्रह करो।" इस प्रकार प्रगट रूप से निमन्त्रण देना चाहिए । पैर फैलाकर सो सकते हैं, उसे शय्या कहते हैं । संथारा तो उस से थोड़ा छोटा होता है । एक द्रव्य से बना औषध कहलाता है । अनेक द्रव्यों से बना भैषज्य होता है । वर्तमान काल में श्रावक बृहद् वन्दन के बाद इस प्रकार का निमन्त्रण देते हैं । जिसने गुरु के साथ प्रतिक्रमण किया हो वह तो सूर्योदय के बाद अपने घर जाते समय निमन्त्रण दे । जिसने गुरु के साथ प्रतिक्रमण नहीं किया हो, वह जब गुरु को वन्दन के लिए आये तब इस प्रकार से निमन्त्रण करे । 1 मुख्यतया तो दूसरी बार जिनपूजा के समय प्रभु समक्ष नैवेद्य आदि चढ़ाकर भोजन के लिए अपने घर जाते समय पुनः गुरु के पास उपाश्रय में आकर निमन्त्रण देना चाहिए। यह बात श्राद्धदिन- कृत्य आदि में लिखी गयी है । उसके बाद यथावसर वैद्य आदि के पास गुरु आदि की चिकित्सा करावे, औषध आदि प्रदान करे । जो भी योग्य पथ्य हो, वह पथ्य प्रदान करे । अन्य भी कोई कार्य हो तो करें। कहा भी है"ज्ञानादि गुणों की सहायता हेतु साधुनों को जो-जो प्रहार, औषध और वस्त्र आदि योग्य हो वह वह वस्तु देनी चाहिए।" • जब अपने घर साधु गोचरी बहोरने के लिए पधारे तब उनके योग्य जो-जो पदा हो, उन
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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