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________________ श्रावक जीवन-दर्शन/१२१ हैं—प्रासुक और अप्रासुक । प्रासुक सरिसवय दो प्रकार के हैं—याचित और अयाचित । याचित सरिसवय दो प्रकार के हैं-एषणीय और अनेषणीय । एषणीय सरिसवय दो प्रकार के हैं-लब्ध और अलब्ध । "इस प्रकार धान्य सरिसवय में शस्त्र से अपरिणत, अप्रासुक, अयाचित, अनेषणीय और अलब्ध अभक्ष्य हैं और शेष सभी प्रकार के सरिसवय साधु के लिए भक्ष्य हैं। "इसी प्रकार कुलत्थ और मास के लिए भी समझ लेना चाहिए। इसमें इतना विशेष हैमास तीन प्रकार के हैं-कालमास (महीना), अर्थमास (सोने-चांदी की एक विशेष तौल) और धान्यमाष (उड़द)।" इस प्रकार थावच्चापुत्र प्राचार्य से प्रतिबोध पाकर अपने एक हजार शिष्य-परिवार सहित शुक परिव्राजक ने दीक्षा स्वीकार की। थावच्चापुत्र प्राचार्य अपने एक हजार शिष्यों के साथ शत्रुजय महातीर्थ पर सिद्धिपद को प्राप्त हुए। उसके बाद शुक्राचार्य ने पन्थक आदि पाँच सौ मन्त्रियों के साथ सेलकपुर के राजा सेलक को प्रतिबोध देकर दीक्षा प्रदान की। उसके बाद शुक्राचार्य भी मोक्ष में चले गये। सेलकमुनि ग्यारह अंगों के ज्ञाता बने और अपने पांच सौ शिष्यों के साथ पृथ्वीतल पर विचरने लगे। इसी बीच हमेशा रूखा आहार लेने के कारण सेलकमुनि खुजली व पित्तरोग से ग्रस्त हो गये। वे विहार करते हुए सेलकपुर में आये। वहाँ उनका सांसारिक पुत्र मंडूक राजा था। राजा ने उन्हें अपनी वाहनशाला में रखा । प्रासुक औषध और पथ्य आहार का योग मिलने से सेलक मुनि शीघ्र रोग मुक्त हो गये, फिर भी स्निग्ध पाहार की लोलुपता के कारण वहाँ से विहार न कर वहीं रुक गये। सेलक मुनि की वैयावच्च के लिए पंथक मुनि को रखकर अन्य सब मुनियों ने वहाँ से विहार कर दिया। एक बार कात्तिक चौमासी के दिन सेलक मुनि यथेच्छ पाहार खाकर सो गये । प्रतिक्रमण का समय हुमा तब पंथक मुनि ने क्षमापना के लिए उनके चरणों में अपने मस्तक का स्पर्श किया। अपने देह-स्पर्श से सेलक मुनि की निद्रा भंग हो गयी और वे गुस्से में आ गये। तब पंथक मुनि ने कहा-"भगवन् चातुर्मास में हुए अपराधों की क्षमा याचना के लिए मैंने आपके चरणों का स्पर्श किया था।" पंथक मुनि के इन वचनों को सुनते ही सेलक मुनि की मोह-निद्रा उड़ गई। उन्हें वैराग्य उत्पन्न हुआ। वे सोचने लगे-"रस में प्रासक्त बने, ऐसे मुझको धिक्कार हो।" इस प्रकार जागृत बनकर उन्होंने तुरन्त ही वहाँ से विहार कर दिया। उसके बाद दूसरे शिष्य भी इकट्ठ हो गये। सभी शत्रुजय तीर्थ पर पहुंचे और वहीं पर सब मोक्ष में पधारे।
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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