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________________ श्रादविधि/१२० 卐 थावच्चापुत्र का प्रसंग म द्वारकानगरी में किसी अत्यन्त समृद्ध सार्थवाह का थावच्चापुत्र नाम का पुत्र था। बत्तीस कन्याओं के साथ उसका पाणि-ग्रहण हुआ था। एक बार नेमिनाथ प्रभु के उपदेश को सुनकर थावच्चापुत्र को प्रतिबोध हुआ। वह दीक्षा के लिए तैयार हो गया। बहुत समझाने पर भी जब वह नहीं रुका तो पुत्र के दीक्षा महोत्सव के लिए थावच्चा माता ने श्रीकृष्ण के पास राजचिह्नों की याचना की। उसके घर आकर श्रीकृष्ण ने थावच्चापुत्र को समझाया, "दीक्षा मत लो। अनुकूल सामग्री का भोग करो।" थावच्चापुत्र ने कहा-"भयभीत को भोग कैसे पसन्द पड़े ?" कृष्ण ने पूछा-"मेरे रहते तुझे किससे भय है ?" . उसने कहा-"मृत्यु से।" इत्यादि प्रकार से उसकी परीक्षा करके कृष्ण ने उसकी दीक्षा का भव्य महोत्सव किया और उसने भी एक हजार अन्य राजकुमारों के साथ दीक्षा स्वीकार की। दीक्षा लेने के बाद थावच्चापुत्र क्रमशः चौदहपूर्वी बने। सेलकपुर में पांच सौ मंत्रियों सहित सेलक राजा को श्रावक बनाकर थावच्चापुत्र प्राचार्य सौगन्धिका नगरी में पधारे। उस नगरी में व्यास का पुत्र शुक परिव्राजक एक हजार शिष्यों के साथ रहता था। वे परिव्राजक त्रिदण्ड, कमण्डल, छत्र, त्रिकाष्ठी, अंकुश, पवित्रक तथा केसरी नाम की वस्तु अपने हाथ में रखते थे। उनके वस्त्र गेरुए रंग के थे। वे सांख्य सिद्धान्त के अनुसार प्राणातिपात-विरमण आदि पाँच व्रत (यम) और शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर-प्रणिधान इन पाँच नियमों को मिलाकर शौचमूलक दस प्रकार के परिव्राजक धर्म का पालन करते थे और दानधर्म की प्ररूपणा करते थे। ___ उसकी प्रेरणा से सुदर्शन नामक नगरसेठ ने शौचधर्म स्वीकार किया था। थावच्चापुत्र प्राचार्य ने उसे पुनः प्रतिबोध दिया और उसे विनयमूलक जैनधर्म स्वीकार कराया। सुदर्शन सेठ की उपस्थिति में शुक परिव्राजक और थावच्चापुत्र प्राचार्य के बीच इस प्रकार प्रश्नोत्तर हुए शुक परिव्राजक :- "हे भगवन् ! सरिसवय भक्ष्य है या अभक्ष्य है ?" थावच्चापुत्र :-“हे परिव्राजक ! सरिसवय भक्ष्य भी है और अभक्ष्य भी है।" . सरिसवय दो प्रकार के हैं—मित्र सरिसवय (सदृशवय) और धान्य सरिसवय (सर्षप) मित्र सरिसवय तीन प्रकार के हैं-एक साथ उत्पन्न हुए, एक साथ वृद्धि पाये हुए और बाल्य वय से धूल में एक साथ खेले हुए। ये तीनों प्रकार के सरिसवय साधु के लिए अभक्ष्य हैं। धान्य सरिसवय दो प्रकार के हैं-शस्त्र से परिणत और शस्त्र से अपरिणत। शस्त्र-परिणत सरिसवय दो प्रकार के
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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