SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रावक जीवन-दर्शन / १०९ "प्रभु के समक्ष किये गये दीप के प्रकाश में कागज नहीं पढ़ना चाहिए, गृहकार्य नहीं करना चाहिए, सिक्के (धन) की परीक्षा नहीं करनी चाहिए। प्रभु के दीप से अपने निजी कार्य के लिए दीपक नहीं प्रगटाना चाहिए ।" प्रभु के चन्दन से अपने कपाल आदि पर तिलक नहीं करना चाहिए । प्रभु के जल से अपने हाथ भी नहीं धोने चाहिए । देव की शेषा ( न्हवरण जल आदि) भी प्रभु के देह के नीचे गिरा हुआ अल्प मात्रा में लेना चाहिए, परन्तु प्रभु के शरीर पर से अपने हाथ से नहीं लेना चाहिए । चैत्य सम्बन्धी झल्लरी, भेरी आदि भी गुरु या संघ के समक्ष नहीं बजानी चाहिए । कुछ आचार्यों का मत है - " विशेष कारण आ पड़ने पर गुरु या संघ के समक्ष भेरी-झल्लरी आदि बजानी पड़े तो उसका विशेष नकरा ( भाड़ा) देना चाहिए ।" कहा भी है "जिनेश्वर सम्बन्धी चामर, छत्र, कलश आदि उपकरण जो मूढ़ पुरुष मूल्य ( भाड़ा ) चुकाए बिना अपने निजी कार्य में उपयोग में लेता है, वह दुःखी होता है ।" י भाड़ा ( नकरा ) देकर अपने कार्य के लिए उपयोग में ली गयी भेरी-झल्लरी आदि टूट जाय तो उसकी मरम्मत निजी द्रव्य से करानी चाहिए । गृहकार्य के लिए प्रगटाये गये दीपक को प्रभु दर्शन के लिए प्रभु समक्ष लाने मात्र से वह देवदीप नहीं बन जाता है। पूजा के लिए ही दीप प्रगटाया हो तो ही वह देवदीप बनता है । मुख्यतया देवदीप के लिए सकोरे आदि अलग ही रखने चाहिए। अपने सकोरे आदि में देवपूजा हेतु दीपक करने पर मन्दिर के तेल बाट आदि का अपने कार्य में उपयोग नहीं करना चाहिए । यदि किसी ने पूजा करने वाले लोगों के हाथ-पैर धोने के लिए मन्दिर में अलग से जल रखा हो तो उस जल से हाथ-पैर आदि धोने में कोई आपत्ति नहीं है । इसीलिए पिंगानिका, टोकरी, केसर घिसने का पत्थर आदि तथा चन्दन, केशर, कपूर, कस्तूरी आदि वस्तु अपनी निश्रा में ही रखकर उनका देवपूजा आदि में उपयोग करना चाहिए । परन्तु उन्हें देव सम्बन्धी नहीं करनी चाहिए। देव सम्बन्धी न की हो तो अपने घर के निजी प्रयोजन में भी उनका उपयोग कर सकते हैं । इसी प्रकार झल्लरी-भेरी आदि के लिए भी समझना चाहिए । यदि धर्मकार्यों के लिए बनाकर रखे हों तो समस्त धर्मकृत्यों में उनका उपयोग हो सकता है। अपनी ही मालिकी के साबाण, पर्दे आदि वस्तु जिनमन्दिर के उपयोग के लिए कुछ दिनों के लिए रखे हों तो इतने मात्र से वे देवद्रव्य नहीं बन जाते हैं, क्योंकि उसमें मन के परिणाम ही प्रमाणभूत हैं । यदि ऐसा न हो तो प्रभु के समक्ष जिस पात्र में नैवेद्य रखा जाय, वह पात्र भी देवद्रव्य बन जाना चाहिए |
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy