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________________ ४६ अभिनव प्राकृत-व्याकरण (८५) समास आदि में जो पद प्रधान न होकर गौण होता है, उसके अन्तिम ऋ के स्थान में उकार आदेश होता है । जैसे___ माउमंडलं, मादुमंडलं<मातृमण्डलम् - तकार का लोप न होने पर त का द हुआ है और ऋ के स्थान पर उकार । माउहरं, मादुहरं<मातृगृहम् पाउवणं< पितृवनम् तकार का लोप और अ के स्थान पर उकार । ( ८६) गौण- अप्रधान मातृशब्द के ऋकार को विकल्प से इकार होता है। जैसेमाइ-हरं, माउ-हरं<मातृगृहम् माइ-मंडलं, माउ-मंडलं, मादु-मंडलं < मातृमंडलम् ( ८७ ) मृषा शब्द में ऋकार के स्थान पर उत् , ऊत् और ओत् होते हैं। जैसेमुसा, मूसा, मोसा< मृषा मुसा-वाओ, मुसा-वाओ, मोसा-वाओ< मृषावादः ( ८८ ) वृष्ट, वृष्टि, पृथक् , मृदङ्ग और नतृक शब्दों में ऋकार के स्थान पर इकार और उकार होते हैं। जैसे विट्ठो, वुट्ठो-वृष्टः विट्ठी, वुट्ठी< वृष्टिः पिहं, पुहं < पृथक मिइंगो, मुइंगो< मृदङ्गः नत्तिओ, नत्तुओ< नप्तृकः (८९ ) वृहस्पति शब्द में प्रकार के स्थान पर विकल्प से इकार और उकार होते हैं। जैसे विहफ्फई, बुहफ्फइ, वहफ्फई ८ बृहस्पतिः ( ९० ) वृन्त शब्द में ऋकार के स्थान पर इत् एत् और ओत होते हैं। जैसेविण्टं, वेण्टं, वोण्टं < वृन्तम् ( ९१ ) व्यञ्जन के सम्पर्क रहित-केवल + के स्थान पर रि आदेश होता है । यह कहीं विकल्प से और कहीं नित्य होता है। जैसेरिद्धी ऋद्धिः रिणं ऋणम् रिज्जू, उज्जू<ऋजु: रिसहो, उसहो< वृषभ: १. गौणान्त्यस्य ८।१।१३४. । हे० । २. मातुरिद्वा ८1१।१३५. । हे । ३. उदूदोन्मृषि ८।१।१३६. । हे। ४. इदुतौ वृष्ट-घृष्टि-पृथङ मृदङ्ग-नप्तृके ८।१।१३७. । हे० । ५. वा बृहस्पतौ ८।१।१३८. । हे०। ६. इदेदोद्वन्ते ८।१।१३६. । हे। ७. रिः केवलस्य ८।२।१४०. । हे० ।
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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