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________________ ४५ अभिनव प्राकृत-व्याकरण पुढे< पृष्टम्-पृ की ऋ के स्थान पर उ, ष का लोप, ट को द्विस्व तथा द्वितीय ट को ठ। पुहइ, पुहवी< पृथिवी-पृ की ऋके स्थान पर उ और थ के स्थान पर है। पाउअं< प्रावृतम्-प्रा के स्थान पर पा, वृ के व का लोप, के स्थान पर उ, त का लोप तथा विसर्ग को मोत्व। भुई < भृतिः-भृ की के स्थान पर उ तथा तकार का लोप । विउअं< विवृतम्-व के व का लोप, इसी के के स्थान पर उत्व । बुंदावणं वन्दावनम् -व के के स्थान वर उत्व । जामाउओ, जामादुओ< जामातृक:-तृ के तकार का लोप, * के स्थान पर उ और क का लोप तथा स्वरशेष। . पिउओ< पितृक:-तृ के त का लोप, के स्थान पर उ और क का लोप, तथा ओत्व । णिहुअं, णिहुदं< निभृतम्-भृ में भ के स्थान पर ह और ऋ के स्थान पर उ। णिव्वुइदनि ति:- में से रेफ का लोप, ऋ को उत्व तथा व को द्वित्व। वुड्ढी< वद्धि:-व के ऋ के स्थान पर उत्व और दन्त्य वर्णो को मूर्धन्य। माउआ<मातृका-तृ के त का लोप, के स्थान पर उ और क का लोप, स्वरशेष। णिउअंद निवृतम् = वृ के व का लोप, ऋ का उत्व तथा त का लोप, स्वरशेष । वुत्तान्तो< वृत्तान्त:- का उत्व । उजू<ऋजु:- ऋ का उत्व । पुहुवी<पृथिवी-पृ में के स्थान पर उत्व, थ का को ह आदेश । बुंदं< वृन्दम्-व के के स्थान पर उत्व । माऊ, मादु<मातृ-तृ में से तकार का लोप, * के स्थान पर उत्व । तकार का लोप न होने पर द।। (८३) निवृत्त और वृन्दारक शब्द में ऋ के स्थान पर विकल्प से उत्व होता है। यथा निवुत्तं, निअत्तं< निवृत्तम्-विकल्पाभाव पक्ष में ऋ के स्थान पर अ हुआ है। वुन्दारया, वन्दारया< वृन्दारका- , ( ८४ ) वृषभ शब्द में ऋ के स्थान पर विकल्प से वकार सहित उत्व होता है। यथा उसहो, वसहोवृषभः-विकल्पाभाव पक्ष में ऋ के स्थान में अ हुआ है। १. निवृत्त-वृन्दारके वा ८।१।१३२. । हे० ।- २. वृषभे वा वा ८।१।१३३: । हे० ।
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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