SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४ अभिनव प्राकृत-व्याकरण सिट्ठर सृष्टम् -स की क्र के स्थान पर इ तथा संयुक्त सकार का लोप, ट को .. ... द्वित्व। पित्थी८ पृथ्वी-पृ की ऋ के स्थान पर इ तथा थ्वी के स्थान पर स्थी। समिद्धी< समृद्धिः-मृ की ऋ के स्थान पर इकार और हस्व को दीर्घ । किवो< कप:-कृ की ऋ के स्थान पर इ और प का व । उक्किट्र उत्कृष्टम्- की ऋ के स्थान पर उत्व, तू का लोप और क को द्वित्व, प का लोप तथा ट को द्वित्व । विकल्प से इत्वविसो, वसो< वृषः किण्हो, कण्हो - कृष्ण: महिविट्ठ < महीपृष्ठम् -यहां उत्तरपद रहने से पृष्ठ शब्द में विकल्प से इत्व नहीं हुआ। ( ८२ ) ऋतु प्रभृति शब्दों में आदि ऋकार को उकार होता है। उदाहरण'-- उदू < ऋतु:-ऋकार के स्थान पर उ और त के स्थान पर द। पउत्ती< प्रवृत्तिः-प्र के स्थान पर प, व का लोप और ऋ के स्थान पर उ तथा ति को दीर्घ । परामुट्ठोर परामृष्टः-मृ की + के स्थान पर उकार, ष का लोप, ट को द्विस्व और द्वितीय ट को ठ। पाउसो< प्रावृट-प्र का प, व का लोप, ऋ के स्थान पर उ और ट् को स परहुओ< परभृत:-भृ की ऋ के स्थान पर उत्व, भ के स्थान पर ह । णिव्वुअं, णिव्वुदंर निर्वृतम्-रेफ का लोप, व को द्वित्व, ऋ के स्थान पर उ, त का लोप और स्वरशेष । उसहो<ऋषभ:- के स्थान पर उ और भ के स्थान पर ह । भाउओ< भ्रातृक:-भ्रा में से रेफ का लोप, तृ में त का लोप, के स्थान पर उ। पहदिरप्रभृति-प्र का प, भृ के स्थान पर हु और त के स्थान पर द। संवुदंर संवृत्तम्-वृ की ऋ के स्थान पर उ तथा त को द। वुड्ढोर, वृद्धः-वृ की ऋ के स्थान पर उ तथा दन्त्यवों को मूर्धन्य । . मुडालं मृणालम्--मृ की क के स्थान पर उ तथा ण के स्थान पर ड । पाहुडं< प्राभृतम्-प्र के स्थान पर प, भ के स्थान पर ह और त के स्थान पर ड। १. उदृत्वादौ ८।१।१३१. ऋतु इत्यादिषु शब्देषु प्रादेऋत उद् भवति । हे० ।
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy