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________________ ३२२ अभिनव प्राकृत व्याकरण मिलाणं, मिलानं मलानं-स्वरभक्ति के नियम द्वारा म और ल का पृथक्करण और इकारागम। अक्खायं < आख्यातम्-दीर्घ अ को ह्रस्व, ख्या के स्थान पर क्ख, त का लोप और अ स्वर शेष को य श्रुति । निहियं < निहितम्-तकार का लोप, अ स्वर शेष और य श्रुति । आणत्तं <आज्ञप्तम्-ज्ञ के स्थान पर ण, संयुक्त प का लोप और त को द्वित्व । संखयं संस्कृतम् - स्क के स्थान पर ख, त का लोप, अ स्वर शेष और य श्रुति । आकुटुं < आक्रु-म्-क्रु में से संयुक्त रेफ का लोप, संयुक्त ष् का लोप, ट को द्वित्व, द्वितीय ट को ठ। विग8< विनष्टम् –न के स्थान पर ण, ष्ट के स्थान पर ह। पणटुं प्रणष्टम् -प्र के स्थान पर प,ष्ट के स्थान पर ट। मटुं< मृष्टम्-मकारोत्तर के स्थान पर अ, ष्ट के स्थान पर छ । हयं <हतम् -मध्यवर्ती त का लोप, अ स्वर शेष, य श्रुति । जायं जातम् -, गिलाणं, गिलानं < ग्लानम् -स्वर भक्ति के नियम से ग्ला का पृथक्करण, अकार के स्थान पर इत्व। परूविअं< प्ररूपितम् –प्र के स्थान प, मध्यवर्ती प को व, त का लोप और अ स्वर शेष। ठियं < स्थितम्-स्थ के स्थान पर ठ, त लोप, अ स्वर शेष और य श्रुति । पिहियं < पिहितम्-त लोप, अ स्वर शेष और अ के स्थान पर य । पन्नत्तं, पणत्तं ८ प्रज्ञप्तम्-प्र के स्थान पर प, ज्ञ को ण्ण, संयुक्त प का लोप और त को द्वित्व । पन्नवियं < प्रज्ञापितम्-प्र के स्थान पर प, ज्ञा के स्थान पर न्न, प को व, त लोप और अ शेष तथा य श्रुति । सक्वयं संस्कृतम्-स्कृ के स्थान पर क, त लोप, य श्रुति तथा 'सं' के अनुस्वार का लोप। किलिटुं < क्लिष्टम्-स्वरभक्ति के नियमानुसार पृथक्करण, इकार का आगम, ष्ट के स्थानपर ट। सुयं < श्रुतम्-श्रु के स्थान पर सु, तकार का लोप, य श्रुति । संसटुं< संसृष्टम्-सकारोत्तर के स्थान पर अ, ष्ट के स्थान पर ट। घटुं<घृतम्-घकारोत्तर ऋ के स्थान पर अ, ष्ट के स्थान पर ह ।
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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