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________________ अभिनव प्राकृत-व्याकरण तक हमारा विश्वास है इस एक व्याकरण के अध्ययन के उपरान्त अन्य व्याकरणों की जानकारी की अपेक्षा नहीं रहेगी। मध्यकालीन आर्यभाषाओं की प्रमुख प्रवृत्तियों के साथ आधुनिक आर्यभाषाओं की उत्पत्ति के बीज सिद्धान्तों को भी जाना जा सकेगा। ( १० ) भाषाविज्ञान के अनेक सिद्धान्त भी इस व्याकरण में समाविष्ट हैं । स्वरलोप, व्यञ्जनलोप, स्वरागम, व्यञ्जनागम, स्वर-व्यञ्जन-विपर्यय, समीकरण, विषमोकरण, घोषीकरण, अघोषीकरण, अभिश्रुति, अपश्रुति और स्वरभक्ति के नियम इसमें अन्तहित हैं। अत: भाषाविज्ञान के अध्ययनार्थियों के लिए इस व्याकरण की उपयोगिता कम नहीं है। आभार इस व्याकरण को लिखने की प्रेरणा श्री भाई विनयशंकर जी, तारा पब्लिकेशन्स, वाराणसी एवं मित्रवर डा० राममोहनदास जी एम० ए०, पी-एच० डी० आरा से प्राप्त हुई है। आप दोनों के आग्रह से यह कृति एक वर्ष में लिखकर पूर्ण की गयी है, अत: मैं उक्त दोनों भाइयों के प्रति हृदय से कृतज्ञता ज्ञापन करता हूँ। ___ आदरणीय डा० एन. टाटिया, निर्देशक प्राकृत जैन विद्यापीठ, मुजफ्फरपुर ने विषयसम्बन्धी सुझाव दिये हैं, जिनके लिए उनका आभारी हूँ। उदाहरणानुक्रमणिका एवं प्रयोगसूची तैयार करने में प्रिय शिष्य श्री सुरेन्द्रकुमार जैन ने अथक श्रम किया है, अत: उन्हें हृदय से आशीर्वाद देता हूँ। भाई प्रो. राजारामजी तथा स्वामी द्वारिकानाथ शास्त्री, व्याकरण-पालि-बौद्धदर्शनाचार्य, वाराणसी से प्रूफ-संशोधन में सहयोग प्राप्त होता रहा है, अत: उनके प्रति भी आभारी हूँ। उन समस्त ग्रन्थकारों का भी आभारी हूँ , जिनकी रचनाओं के अध्ययन से प्रस्तुत प्राकृत व्याकरण सम्बन्धी सामग्री ग्रहण की गयी है। भूलों का रहना स्वाभाविक है, अत: त्रुटियों के लिए क्षमायाचना करता हूँ। एच० डी० जैन कालेज, पारा ) (मगध विश्वविद्यालय) नावरण, वीर नि० सं० २४८६ । नेमिचन्द्र शास्त्री
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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