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________________ अभिनव प्राकृत-व्याकरण पहला अध्याय वर्ण-विचार और संज्ञाएँ भाषा की मूल ध्वनियों तथा उन ध्वनियों के प्रतीक स्वरूप लिखित चिह्नों को वर्ण कहते हैं। प्राकृत की वर्णमाला संस्कृत की अपेक्षा कुछ भिन्न है। ऋ, ल, ऐ और औ स्वर प्राकृत में ग्रहण नहीं किये गये हैं। व्यंजनों में श, ष और स इन तीन वर्षों में से केवल स का ही प्रयोग मिलता है। न का प्रयोग विकल्प से होता है। अत: प्राकृत की वर्णमाला में निम्न वर्ण पाये जाते हैं। स्वर-जिन वर्णों के उच्चारण में अन्य वर्गों की सहायता अपेक्षित नहीं होती, वे स्वर कहलाते हैं । प्राकृत में स्वर दो प्रकार के हैं-हस्व और दीर्घ । अ, इ, उ, ए, ओ ( ह्रस्व )। आ, ई, ऊ, ऐ, औ ( दीर्घ )। व्यंजन-जिन वर्गों के उच्चारण करने में स्वर वर्णों की सहायता लेनी पड़ती है, वे व्यंजन कहलाते हैं। प्राकृत में व्यंजनों की संख्या ३२ है । क ख ग घ ङ (कवर्ग) च छ ज झ ज (चवर्ग) ट ठ ड ढ ण (टवर्ग) त थ द ध न (तवर्ग) प फ ब भ म (पवर्ग) __य र ल व (अन्तःस्थ) स ह (ऊष्माक्षर) (अनुस्वार ) अनुस्वार को भी व्यंजन माना गया है, यतः अनुस्वार म या न् का रूपान्तर है। प्राकृत में विसर्ग की स्थिति नहीं है । विसर्ग सर्वदा ओ या ए स्वर में परिवर्तित हो जाता है। असंयुक्त अवस्था में ङ और ज का व्यवहार भी नहीं पाया जाता है। अत: व्यंजन ३० हैं। for Eio ho
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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