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________________ प्रस्तावना २३ विशेषताएँ भी पायी जाती हैं। शेष बातें समस्त प्राकृतों में प्राय: समान रहती हैं । उदाहरणार्थ दीर्घसन्धि जिन परिस्थितियों में महाराष्ट्री प्राकृत में होती है उन्हों परिस्थितियों में अर्धमागधी भाषा में भी । अतएव सामान्य प्राकृत से महाराष्ट्री प्राकृत का ग्रहण होने पर भी सन्धि, समास और स्त्रीप्रत्यय प्रकरण के उदाहरणों में समान नियमों से अनुशासित होनेवाले अर्धमागधी और महाराष्ट्री भाषाओं के उदाहरण संकलित हैं । ( २ ) पद, वाक्य, सन्धि, समास, स्त्री प्रत्यय, कृत्, तद्धित आदि की परिभाषाएँ दी गयी हैं । इन परिभाषाओं में संस्कृत व्याकरण सरणि की गन्ध पायी जा सकती है । पर इस तथ्य को सदा ध्यान में रखना चाहिए कि किसी भी प्राच्य भाषा के अनुशासन प्रसंग में उक्त परिभाषाएँ वे ही रहेंगी, जो संस्कृत में हैं । यतः संस्कृत व्याकरण har सर्वाधिक प्रभाव अन्य भारतीय भाषाओं के व्याकरण ग्रन्थों पर है । ( ३ ) स्त्रीप्रत्यय और कारक के नियम संस्कृत व्याकरण के आधार पर ही प्रस्तुत व्याकरण में निबद्ध किये गये हैं । प्रत्ययों के रूप भी संस्कृत व्याकरण के समान ही हैं । ( ४ ) जितने प्राकृत व्याकरण उपलब्ध हैं, उनसे तभी कोई व्यक्ति अनुशासन सम्बन्धी नियमों की जानकारी प्राप्त कर सकता है, जब संस्कृत व्याकरण की जानकारी हो। संस्कृत व्याकरण की जितनी अच्छी जानकारी रहेंगी, उक्त व्याकरण ग्रन्थों से प्राकृत भाषा सम्बन्धी अनुशासनों को उतने ही व्यापक और गम्भीर रूप में अवगत कर सकेगा । पर इस व्याकरण में इस बात का पूरा ध्यान रखा गया है कि कोई भी व्यक्ति अन्य भाषा के व्याकरण को जाने बिना भी मात्र इस व्याकरण ग्रन्थ के अध्ययन से प्राकृत भाषा के अनुशासन सम्बन्धी समस्त नियमों को जान जाये । 4 ( ) इस व्याकरण में स्त्रीप्रत्यय, कारक, शब्दरूप, धातुरूप, कृदन्त, तद्धित एवं धातुकोष विस्तृत रूप में दिये गये हैं । ये प्रकरण इतने व्यापक रूप में अन्य किसी व्याकरण प्रन्थ में उपलब्ध नहीं हो सकेंगे । ( ६ ) शौरसेनी, जैन शौरसेनी, मागधी, अर्धमागधी, जैन महाराष्ट्री, पैशाची, चूलिका पैशाची एवं अपभ्रंश भाषा का अनुशासन भी दिया गया है, जिससे महाराष्ट्री के सिवा अन्य भाषाओं की प्रवृत्तियों की जानकारी भी प्राप्त की जा सकती है । (७) पाद-टिप्पणियों में हेम, वररुचि और त्रिविक्रम के सूत्र भी दिये गये हैं, जिससे अनुशासन सम्बन्धी नियमों को हृदयंगम करने में सरलता रहेगी । ( ८ ) परिशिष्टों में उदाहरण शब्दानुक्रमणिका के साथ विभिन्न प्रयोगसूचियां दी गयीं हैं, जिनसे पाठकों को प्राकृत भाषा के अध्ययन में सरलता प्राप्त होगी । ( 2 ) इस शब्दानुशासन में एक विशेषता और उपलब्ध होगी कि जिस विषय को उठाया है, उसका अनुशासन सभी दृष्टिकोणों से पूर्णरूपेण उपस्थित किया है। जहां
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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