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________________ २१८ अभिनव प्राकृत-व्याकरण परंमुहं < पराङ्मुखम्-विमुख परसवे परश्व:-परसों परितोद परित:-चारों ओर - परोप्पर, परुप्परं परस्परम् परस्पर में, आपस में पसरह - प्रसह्य-हठात् , जबर्दस्ती पातो< प्रात:-प्रातःकाल पायो, पाओ< प्रायः-प्रायः, बहुधा. पि< अपि-भी पुण, पुणोः< पुन:-फिर पुणरुत्तं< पुनरुक्तम् -पुनरुक्त पुणरवि< पुनरपि-फिर भी पुरओ< पुरतः-आगे, सम्मुख पुरत्था< पुरस्तात् – आगे, सम्मुख पुरा< पुरा-पहले पुहं, पिहं < पृथक्-अलग पेच्च प्रेत्य-परलोक में बहिद्धा, बहिया, बहिं बहिर्धा, भुज्जोर भूयः-बार-बार, अधिक बहिः-बाहर मग्गतो<मार्गत:-पीछे मणयं मनाक्-थोड़ा मुसार मृषा—झूठ मुहु< मुहुः-बार-बार मामा-निषेध मोदउल्लासमुधा–व्यर्थ यहो< ह्यः-बीता हुआ, कल रहो< रहः-गुप्त लहु - लघु- शीघ्र व्वर इव-जिस प्रकार विणा< विना-बिना वीसुंदविष्वक्-व्याप्त वे< वै-निश्चय सइ< सदा-- सदा सइ< सकृत् --एकवार सक्खं< साक्षात्-प्रत्यक्ष सज्जो< सद्यः-शीघ्र सद्धिं सार्धम्-साथ सपक्खि ८ सपक्षम् -अभिमुख, सामने समं< समम्-साथ सम्म< सम्यक्-ठीक, भली प्रकार सयं स्वयम्-स्वयम् सयाद सदा-सदा सव्वओ< सर्वतः-सभी ओर सह सह-साथ सहसा< सहसा-एकबारगी सिय, सिअ स्यात्-कथञ्चित् सुवत्थिर स्वस्ति-कल्याण सुवेदन:-आनेवाला कल सेवं तदेवं-समाप्ति, स्वीकार हंद रहन्त (गृहाण)-ग्रहण करो, ले हलाद -सखि के लिए सम्बोधन हव्वं< हव्यम्-शीघ्र हिर -निश्चय हेहार अध:-नीचे
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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