SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 250
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अभिनव प्राकृत व्याकरण समुच्चयबोधक अव्यय जो अव्यय एक वाक्य को दूसरे वाक्य में मिलाता है, उसे समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं । इसके सात भेद हैं । २१९ ( १ ) संयोजक – य, अह, अहो, ( अथ ), उद, उ ( तु ), किंच आदि । ( २ ) वियोजककिंवा, तु, ऊ, किंतु आदि । Lal, ( ३ ) संकेतार्थ - जइ, चेअ, णोचेअ, ( नोचेत् ), जद्दपि, तहावि, जदि, इत्यादि । ( ४ ) कारणवाचक - हि तअ, तेण इत्यादि । (५) प्रश्नवाचक - अहो, उद, किं किमुत, तणु, णु, किन्तु, इत्यादि । ( ६ ) कालवाचक — जाव, ताव, जदा, तदा, कदा इत्यादि । (७) विधि अथवा निषेधार्थक – अङ्ग, अह, ई, आम, अद्धा, इत्यादि । अह कार्यारम्भ और 'इति' कार्यान्त का सूचक है । 'य' शब्द और अर्थ का सूचक है। जहां हिन्दी में 'और' दो जोड़े हुए शब्दों के बीच में आता है, वहाँ प्राकृत में 'य' शब्द दोनों के उपरान्त आता है । यथा - रामो लक्खणो य सीआए सह गमीईअ । मनोविकारसूचक अव्यय आनन्द अर्थ में - अव्वो ( १ ) अव्वो -दु:ख, संभाषण, अपराध, विस्मय, आनन्द, आदर, भय, खेद, विषाद और पश्चात्ताप अर्थों में 'अव्बो' का प्रयोग होता है । अव्वो तम्मेसि - खेद है कि तुम उदास हो । अब्बो तुज्झेरिसो माणो - प्रणययुक्त प्रणयी में तुम्हारा ऐसा मान ? – इससे अपराध और आश्चर्य दोनों प्रकट होते हैं। पिअस्स समओ - यह आनन्द की बात है कि प्रियतम के आने का समय है | आदर अर्थ में - अव्वो सो एइ – मेरा प्रियतम यह आ अन्वो - भय है कि वह थोड़े अपराध पर ही रूठ अर्थ में - अब्बो कट्टु – मैं खिन्न और विषण्ण हूँ । एसो सहि यए रिओ - सखि ! मैं तो पछता रही हूँ रहा है । भय अर्थ में - रूसणो जानेवाला है । खेद और विषाद पश्चात्ताप अर्थ में - अव्वो किं कि मैंने इसे बरा क्यों ? ( २ ) आ, हुम् क्रोध सूचक; आ फहमिदं संजाअं - अरे ! यह कैसे हो गया - क्रोध दिखलाया गया है। हं ते कइवरा विवरीया बोहा - क्रोध सहित - खेद है कि कविवर विपरीत बोध वाले हैं । ( ३ ) विषाद, विकल्प, पश्चात्ताप, निश्चय और सत्य अर्थों में 'हन्दि ' अव्यय का प्रयोग किया जाता है । विषाद अर्थ में- हन्दि विदेसो - दुःख है कि हमारे लिए यह विदेश है । विकल्प अर्थ में - जीवइ हन्दि पिआ - पता नहीं मेरी प्रियतमा
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy