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________________ अभिनव प्राकृत - व्याकरण देव + डि = देवे, देवेम्मद देवे; णउले, णउलम्मि (१०) हस्व अकारान्त शब्दों से पर में आनेवाले बहुवचन में हलन्त्यका लोप हो जाता है और अकार को विकल्प से अनुस्वार होता है । यथा देव + सुप्= देवेसु, देवेसुं < देवेषु । ( -११ ) उक्त नियमों के अनुसार पुंल्लिंग अकारान्त शब्दों के लिए विभक्तिचिह्न निम्नांकित हैं— Ято सं० पढमा प्रथमा- - ओ वीआ द्वितीया - तइआ < तृतीया - ण णं प्राकृत विभक्ति चिह्न एक० बहु ० चउत्थी < चतुर्थी – [य, आ, ए विकल्पसे ] पंचमी - < पञ्चमी - त्तो, ओ, उ हि, हिंतो एकवचन K छट्ठी षष्ठी - स सत्तमी सप्तमी - ए, म्मि संबोहण 4 संबोधन - आ, ओ, लुक् आ < सु, सु छ - देवस्स प० – देवो वी० - देव तदेवेण, देवेगं च० – देवरस, (देवाय ) पं० — देवत्तो, देवाओ, देवाउ, देवाहि, देवाहितो, देवा एक० आ सु ए, आ अम् fa, fa, få 21 (371) ण णं ङ (ए) स० – देवे, देवम्मि - सं हे देवो, हे देवा त्तो, ओ, उ, ङसि (अ:) हि, हितो, सुतो σ1, vi डस् (अ:) ङि (इ) सु अकारान्त शब्दों के रूप देव नकुले । सुप् - सप्तमी विभक्ति के ऊपर एत्व तथा सु बहुवचन संस्कृत विभक्ति चिह्न बहु ० जस् (आ: ) शस् ( आनू ) भिस् (भि:) भ्यस् (भ्यः) भ्यस् (भ्यः) १५१ देवे, देवे हे देवा आम् सुप् (स) जस् देवा देवा, देवे देवेद्द, देवेहि, देवेहि देवाण, देवाण देवत्तो, देवाओ, देवाउ, देवाहि, देवेहि, देवाहितो, देवेहितो, देवासुंतो, देवेसुंतो देवाण, देवाण
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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