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________________ १५० अभिनव प्राकृत-व्याकरण () ह्रस्व अकारान्त शब्दों से पर में आनेवाले अम् के अकार का लोप होता है। यथा देव + अम् = देवं देवम्, णउल + अम् = णउलं< नकुलम् । ( ४ ) हस्व अकारान्त शब्दों से पर में आनेवाले टा-तृतीया विभक्ति के एकवचन और आम्-षष्ठी के बहुवचन के स्थान में ण आदेश होता है और ट प्रत्यय के रहने से अ को एत्व हो जाता है। तृतीया एकवचन और पष्ठी के बहुवचन में ण के ऊपर विकल्प से अनुस्वार हो जाता है'। यथा देव + दा = देवेण, देवेणं < देवेन; देव + आम् = देवाण, देवाणं ८ देवानाम् । (५) ह्रस्व अकारान्त शब्दों से पर में आनेवाले भिस् के स्थान में हि आदेश होता है और अकार को एत्व हो जाता है, तथा हि के ऊपर विकल्प से अनुनासिक और अनुस्वार भी होते हैं । यथा देव + भिस् = देवेहि, देवेहि, देवहि देवैः। णउल + भिस् = णउलेहि, णउलेहि, णउलेहिं - नकुलैः । (६ ) ह्रस्व अकारान्त शब्दों से पर में आनेवाले ङसि—पंचमी एकवचन के स्थान में तो, दो, दु, हि और हिन्तो आदेश होते हैं। दो और दु के दकार का लुक भी होता है। जैसे देव + ङसि = देवत्तो, देवादो-देवाओ, देवादु-देवाउ, देवाहि और देवाहिन्तो< देवात्य हाँ नियम २ के अनुसार अ का आत्व हुआ है। (७ ) ह्रस्व अकारान्त शब्दों से पर में आनेवाले भ्यस-पंचमी बहुवचन के स्थान में तो, दो, दु, हिं, हिंतो और संतो आदेश होते हैं । तथा विकल्प से दीर्घ होता है। यथा देव + भ्यस् = देवत्तो, देवादो-देवाओ, देवाउ,-देवाउ, देवाहि, देवेहि, देवाहितो, देवेहितो, देवेसुंतो, देवासुंतो देवेभ्यः । (८) ह्रस्व अकारान्त शब्दों से पर में आनेवाले डस्--षष्टी एकवचन के स्थान में 'स्स' आदेश होता है । यथा देव + ङस् = देवस्सा देवस्य; णउल + ङस् = णउलस्सर नकुलस्य । (९) ह्रस्व अकारन्त शब्दों से पर में आनेवाले ङि–सप्तमी एकवचन के स्थान में ए और म्मि आदेश होते हैं तथा अकार को एत्व होता है । यथा १. टा-प्रामोर्णः ८।३।६. हे०। ३. उसेस् त्तो-दो-दु-हि-हिन्तो लुकः ८।३।८ हे। ५. ङसः स्सः ८।३।१० हे। २. भिसो हि हिँ हि ८।३।७. हे । ४. भ्यसस् त्तो-दो दु-हि-हिन्तो सुन्तो ८।३।६ हे। ६. डे म्मि : ८।३।११ हे।
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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