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________________ अभिनव प्राकृत-व्याकरण १४९ प्राकृत में लिङ्ग तीन, पर वचन दो हो-एकवचन और बहुवचन होते हैं । इसमें द्विवचन को स्थान प्राप्त नहीं हैं। प्राकृत में तीन पुरुष होते हैं-उत्तमपुरुष, मध्यमपुरुष और प्रथमपुरुष । प्रथमपुरुष को अन्यपुरुष भी कहा जाता है। कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, संबंध और अधिकरण इन सात कारकों को प्रथमा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी और सप्तमी विभक्ति कहा जाता है; किन्तु प्राकृत में चतुर्थी विभक्ति का स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं है । इसके स्थान पर षष्ठी विभक्ति का ही प्रयोग मिलता है। . विभिन्न विभक्तियों को प्रकट करने के लिए प्रातिपदिकों में जो प्रत्यय लगाये जाते हैं, उन्हें 'सुप्' कहते हैं । इसी प्रकार विभिन्न काल की क्रियाओं का अर्थ प्रकट करने के लिए जो प्रत्यय जोड़े जाते हैं, उन्हें 'तिङ) कहते हैं। सुप और तिङ को चैयाकरण 'विभक्ति' ही कहते हैं। प्राकृत में चार प्रकार के शब्द पाये जाते हैं अकारान्त-अ और आ से अन्त होने वाले शब्द; इकारान्त-इ और ई से अन्त होनेवाले शब्द, उकारान्त-उ और ऊ से अन्त होनेवाले शब्द, एवं हलन्तजिनके अन्त में व्यंजन अक्षर आये हों। पर विशेषता यह है कि प्रयोग में हलन्त शब्द उपलब्ध नहीं हैं; अतः इनके स्थान पर भी शेष तीन प्रकार के शब्दों में से ही किसी प्रकार के शब्द का प्रयोग होता है। इस प्रकार प्राकृत में तीन ही प्रकार के शब्द-अकारान्त, इकारान्त और उकारान्त व्यवहृत होते हैं। (१) पुंलिंग में ह्रस्व अकारान्त शब्दों के आगे आनेवाली प्रथमा विभक्ति के एकवचन में सुप्रत्यय के स्थान में ओ आदेश होता है। यथा देवोद देवः; हरिअंदो< हरिश्चन्द्रः; जिणो जिनः; वच्छो वृक्षः आदि । (२) पुंलिंग के ह्रस्व अकारान्त शब्दों में जस् (प्रथमा बहुवचन ), शस् (द्वितीया बहुवचन ), ङसि ( पंचमी एकवचन ) और आम् (षष्ठी बहुवचन ) विभक्तियों में अन्त्य अ के स्थान में आ आदेश होता है तथा जस् और शस् विभक्तियों का लोप होता है । शस् प्रत्यय के रहने पर विकल्प से एत्व होता है । यथा देव + जस् = देवा देवाः; देव + शस् = देवा, देवे - देवान् । . गउल + जस् = णउला ८ नकुलाः; पउल + शस् = णउला, णउले < नकुलान् । १. अत: सेडों: ८।३।२. हे। ३. टाण-शस्येत् पाश१४. हे०। २. जस-शसोलुक ८।३।४. हे । ४. प्रमोस्य ८।३।५. हे ।
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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