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________________ ( १६ ) दर्शनानन्द जी शास्त्रार्थ के लिये पधारेंगे । जयदेव शर्मा मंत्री आर्यसमाज अजमेर ता० ३०-६-१२ समय १२ बजे, । . दो पहरको सभाका प्रारम्भ ठीक समय पर हुआ और भजन व मङ्गलाचरण होने के पश्चाद् वादिगजकेसरी जी को श्री जैन सिद्धान्त पाठशाला के विद्यार्थी मक्खन लाल जी ने स्वामी दर्शनानन्द जी के उस व्याख्यानका जो कि उन्होंने कल २९ जनकी सन्ध्याको कुंवर साहबके २८ जूनके रात्रिको स. मीक्षाके खण्डनमें दिया था भली भांति युक्ति और प्रमाणों से खण्डन किया। विद्यार्थी मक्खनलाल जी ने २८ जून की रात्रिको ही ( जब कि वह प्रार्यसमाज भवनमें भाऱ्या विद्वानों के व्याख्यानोंके नोट लेने गये थे) स्वामी जीका खण्डन समाप्त हो जाने पर उसपर शङ्का समाधानकर कंबर साहब की समी. क्षा सत्य सिद्ध करनेको मात्रा मांगी थी पर हमारे प्रार्य पमाणी भाई तो २७ जूनके शङ्का समाधानसे सीखे हुये थे अतः उन्होंने किसी प्रकार आज्ञा न दी। स्वामी दर्शनानन्द जी स्वामी सर्वदानन्द जी के साथ १॥ वजे के लग भग सभा, पधारे और उनके पीछे ही सैकड़ों आर्यसमाजी भाई । स्वामी जी के लिये अपने प्लेटफार्म के सामने ही दूसरा प्लेटफार्म बहुत बढ़िया वना दिया गया और उसपर दोनों स्वामी जीके लिये दो कुर्सियां व उनकी ढेर की ढेर पुस्तके ( जो कि वह अपने साथ लाये थे ) रख दी गयीं । सभाका पैगडाल आज खचाखच भरा हुआ था और उसमें कई हजार आदमी थे। सभा के सभापति थे सेठ ताराचन्द जी रईस नसीरावाद । खामी जी की इच्छानुसार ही शास्त्रार्थ मौखिक रक्खा गया और पांच पांच मिनिट दोनों ओरके वक्ताओं को बोलने का समय निश्चित हुमा । यद्यपि स्वामी जी की इच्छा यह थी कि शाखार्थ तो मौखिक ही होय परन्तु दोनों ओरके तीन तीन रिपोर्टर उसको अक्षर प्रत्यक्षर लिखते जांय और एक एक वक्ताके बोल चुकने पर उन सबके लेख सुनकर और जांचकर दोनों पक्षके हस्ताक्षर होजांय पर इस पर इस कारण इन्कार कर दिया गया कि यहांके रिपोर्टर लोग संक्षिप्तलिपिप्रणाली में दक्ष नहीं है अतः वह दोनों वक्ताओं के शब्दोंको अक्षर प्रत्यक्षर नहीं लिख सकते और एक भी शब्द या अक्षर के इधर उधर हो
SR No.032024
Book TitlePurn Vivaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Tattva Prakashini Sabha
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year1912
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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