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________________ ( १७ ) जाने से अर्थका विषय हो सकता है। यदि प्रत्येक रिपोर्टर के लेखपर आच जांचकर हस्ताक्षर किये जांय तो सारा पब्लिकका समय यों ही नष्ट हो जा यगा। इसपर दोनों ओोस्से यह निश्चय हुआ कि अपने अपने दिए लिखें। शास्त्रार्थका विषय यह था कि ईश्वर इस जगतका कर्ता है। श्री जैनतत्त्व प्रकाशिनी सभाकी ओर से श्रीमान् स्याद्वाद्वारिधि बादि गज केसरी पंडित गोपालदास जी वरैया बोलने वाले थे और उधर से स्वयम् स्वामी द नानन्द जी सरस्वती । शास्त्रार्थका प्रारम्भ ठीक दो बजे दिन हुआ श्रीमान् स्याद्वादवारिधि वादि गज केसरी पंडित गोपाल दास जी व रैय्या द्वारा श्री जैन तत्त्व प्रकाशिनी सभा और श्रार्य्य समाजी स्वामी दर्शनानन्द जी सरस्वती में ईश्वर के सृष्टि कर्तृत्व के विषय में जो मौखिक शास्त्रार्थ हुआ वह इस रिपोर्ट के अन्त में परिशिष्ट नम्बर "क,, में प्रकाशित किया जाता है । शास्त्रार्थ समाप्त हो जाने पर आर्य समाज की ओर से बाबू मिटूनलाल जी बकील और जैन समाज की ओर से चन्द्रसेन जैन वैद्यने सम्राट पंचम जार्ज व वृटिश गवर्म्यण्टको (जिन के निष्कष्टक राज्य में यह शास्त्रार्थ इस प्रकार शान्ति और प्रेम से समाप्त हुआ ) धन्यवाद दिया और अन्त में सभापति की सर्व उपस्थित सज्जनों को धन्यवाद देने प्रादि को उपसंहार संक्षिस वक्ता होकर मानन्द सभा समाप्त हुयी । आज रात्रिको पंडित दुर्गादत्त जो शास्त्री जैन भूतपूर्व उपदेशक श्रार्य्य समाज का "जैन धर्म और वैदिक धर्म की तुलना तथा दयानन्द कृत वेद भाष्यों की पोल,, पर व्याख्यान होना निश्चित हुआ था अतः निम्न विज्ञापन काशित किया गया । * वन्दे जिनवरम् * जैन धर्म और वैदिक धर्म्मकी तुलना तथा दयानंद कृत वेद भाष्यों को पोल । सर्व साधारण सज्जन महोदयोंकी सेवा में निवेदन है कि ब्राज ता० ३३ .६० २०१२ ई० रविवार सायंकाल को श्रीमान् पण्डित दुर्गादत्त जी शास्त्री जैन भूतपूर्व उपदेशक जाट समाज का "जैनधर्म और वैदिक धर्म की तुलना तथा छा वेदों की पोल,, पर स्थान गोदों की नसियां में व्याख्यान होवे..
SR No.032024
Book TitlePurn Vivaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Tattva Prakashini Sabha
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year1912
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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