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________________ १४ आज०॥७॥ जब सद्गुरु साचलकुं ध्यावै । हाथ जोडकर देवी आवै । गुरु मुख्यसें फुरमावै॥आज० ॥८॥ गुरु मनसा जान जीवावे । करवट ले उठसो मा ध्याता । धनगुरु तुम जगविख्याता॥आज ॥९॥ करण कहे सुभ आशा पुरो। मोह प्रचंडसें करिय दूरो । यो गुरु अविचल पद नूरो ॥ आज० काव्यम् नानारत्न समाकीर्णानिन्दुकुन्दद्युतीनहम् श्वेताक्षतान् मृदून सम्यग् । अर्पयामि शुभावहान ॐ ह्री श्री....अक्षतं निर्वपामि ते स्वाहा ॥ इति अक्षतपूजा समाप्ता. अथ सप्तनैवेद्यपूजापारम्भः मोदक सुंदर नवनवा । पचधारी घृतपूर चाढे रूडे भावसे । जावे संकट दूर ॥१॥ ढाल सालवी. राग केरबा. . सद्गुरु चरणसु मेरे मन वसीया । शैल अचल मुरुराज पधारे। दर्शनकुं संघ आवै नहसिया॥ सद्गुरु
SR No.032023
Book TitleBruhat Puja Aur Laghu Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvandas Amarchand Salot
PublisherJograjji Chandmallji Vaid
Publication Year1916
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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