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________________ ॥१॥ करजोडे पुन विनति करतहैं । लुल लुल लागे पावें फरसिया ॥ सद्गुरु० ॥२॥ बहुत तृषा व्याधि श्रीसंघकुं। चट उठ गुरु पय स्थान दरसिया ॥सदूगुरु० ॥३॥ डांग इसारे अमिजल निकला। लख यश गावत देत हरसिया । सद्गुरु० ॥ ४॥ पीकर नीर हए संघ खुसीमें। जल अगाध विलोकि तरसिया ॥ सद्गुरु० ॥५॥ पंच प्रमाणिक ग्रन्थके कर्ता । तरणि प्रकासिक तेज वरसिया ॥ सद्गुरु० ॥६॥ तर्क सुक्षेत्र समासकी टीका । रच-बहु अर्थ गंभीर दरसीया ॥ सद्गुरु० ॥७" दधि सम गुणगण. ककसूरिके । नामसे भाजे कलुष कुरसिया ॥ सद्गुरु० ॥ ८॥ उपज्या पंचम देव विमाने । गावत गुणजन प्रात उहसिया ॥ सद्गुरु० ॥९॥ त्रय चतु पाट सूरि गुरुराया। शासन मंगल सकल वरतिया ॥ सदगुरु० ॥ १० ॥ धन धन करण कहे शुभ स्वामी । मुज मनमन्दिर तुम गुण वसिया ॥ सद्गुरु० ॥११॥ काव्यम् प्रभूतभेदभोज्यकै-वटैर्यवैस्सुसंस्कृतम् सुसर्पिपक्वमादकम् निवेदयामि तुष्टिदम् ॥१॥ ॐ ह्री श्री....नैवेद्यं निर्वपामि ते स्वाहा. इति नैवैद्यपूजासमाप्ता.
SR No.032023
Book TitleBruhat Puja Aur Laghu Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvandas Amarchand Salot
PublisherJograjji Chandmallji Vaid
Publication Year1916
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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