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________________ • जाहिर उद्घोषणा. - देखो-ऊपरकी गाथाओंका भावार्थ ऐसाहै कि-जो पुरुष जिनाशा के अनुसार सत्य बातरूप शुद्धश्रद्धाका निषेध करके अपने मतपक्षकी झूठी बातरूप मिथ्यात्वको अपने कुलमें याने-समुदायमें स्थापन करे, वह अपने समुदायकी सद्गतिका नाशकरके दुर्गतिमें डालनेका दोषी होताहै ॥ १ ॥ उत्सूत्र (शास्त्र विरुद्ध ) प्ररूपणा करने वालेको बोधीवीज सम्यक्त्वका नाश होताहै और अनंत संसार बढताहै, इसलिये प्राण जानेपरभी जन्म मरणादि दुःखोंसे डरनेवाले धीरपुरुष कभी उत्सूत्रप्ररूपणा नहींकरते ॥२॥ उत्सूत्रप्ररूपणा करनेवाला अपने चिकने (गाढ मजबूत ) कर्मोंका बंध करताहै, कपट सहित माया मृषा बोलताहै तथा संसार बढाताहै, ॥३॥जिन आज्ञाके अनुसार सत्य बातको झूठी बतला कर निषेध करनेवाला और उन्मार्गकी अपनी कल्पित झूठी बात को सत्य कहकर स्थापन करनेवाला गूढ कपटी अंतर मिथ्यात्वरूप शल्य सहित होनेसे तिर्यंच योनिके आयुष्यका बंध करताहै ॥४॥ और उन्मार्ग की बात जमानेसे जिनेश्वर भगवान्का कहाहुआ पंच महाव्रतरूप अपने चारित्र धर्मका नाश करताहै. इत्यादि बहुत बातें शास्त्रविरुद्ध प्ररूपणा करनेवाले के लिये लिखी हैं। ' और यहबात सर्वजैन समाजमें प्रसिद्धहै कि-कोईभी प्राणी शास्त्र का एकपद, एकअक्षर या काना-मात्र-बिंदुकीभी उत्थापना करे या अर्थ उलटा करे बा पहिलेका पाठ निकाल कर; नया दाखिल करके सूत्र को और अर्थको उलट पुलट करदेवे तो वह अपने सम्यक्त्वका और चारित्रका नाश करके मिथ्यादृष्टि अनंत संसारी होताहै। तथा सच्चे उपदेशसे एक जीवको सम्यक्त्वी बनानेसे वह जीव परं. परासे मोक्ष जाताहै, उससे ८४ लक्ष जीवायोनिके सर्वजीवोंको अभय दान देताहै, उसका लाभ सच्चा उपदेश देनेवालेको मिलताहै, और मि. थ्या उपदेशसे किसी जीवको सम्यक्त्वसे भ्रष्ट करके मिथ्यात्वमें डाल नेसे वह संसारमें रूलताहै, उससे ८४ लक्ष जीवायोनिकी घातकरताहै, उसका पाप मिथ्याउपदेश देनेवालेको लगताहै, इसलिये मिथ्याउपदेश देनेवाला ८४ लक्ष जीवायोनिका घातक महान्दोषी समझा जाताहै. __ और जो कोई साधु होकरके भी कभी बडीजीवहिंसा करे, चौरी फरे, किसी से व्याभिचार सेवे, धनादि परिग्रह रक्खे और रात्रिभाजन
SR No.032020
Book TitleAgamanusar Muhpatti Ka Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherKota Jain Shwetambar Sangh
Publication Year1927
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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