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________________ जाहिर उद्घोषणा. सकता, जबतक सम्यग् ज्ञान न होगा तबतक सम्यग् चारित्र की प्राप्ति कभी नहीं होसकती, इससे जिनेश्वर भगवान्की आज्ञा मुजिब चलना यही सम्यग् दर्शन ज्ञान चारित्र की प्राप्तिका हेतुहै, यही संसारी दुःखों का नाश करने वालाहै, यही मोक्ष देनेवाला प्रबल कारण है इस लिये संसारी दुःखोंसे छुटनेकी चाहना करने वाले आत्मार्थियों को जिनेश्वर भगवान्की आशा मूजिब चलनाही परम हितकारीहै। __और आज्ञाविरुद्ध चलनेवाले चाहे बडे २ तपकरें, जपकरें, ध्यान करें, जिन गुणगावे, सूत्र-सिद्धांत पढें-गुणे-सुने-सुनावें, साधुके पांच महाघ्रत पाले, श्रावकके १२ व्रत पालें, दोनों समय प्रतिक्रमण करें, दयापालें, दानदेवें, शीलपालें, इत्यादि बहुत धर्मकार्य करें तोभी आज्ञा विरुद्ध होनेसे सब निष्फल हो जाते हैं. मोक्ष देने वाले नहीं होते, किंतु संसार बढाने वाले होते हैं। देखो-'जमालि' आज्ञा मूजिब चलता और शुद्ध प्ररूपणा करता तो बहुत कठिन (बडी उत्कृष्ट ) क्रिया करनेवाला था सो उसी भवमें अवश्यही मोक्ष जाता परंतु भगवान्का एक वचन उत्थापन करनेसे उसकी बड़ी कठिन क्रिया; तपस्यादिभी सब निष्फल गई और हलकी नीचजातिका किलविषिया देव हुआ. वैसेही आज्ञा विरुद्ध चलनेवाले उत्सूत्रप्ररूपणा करने वाले और उनको समझाने परभी अपना झूठा हट नहीं छोड़ने वाले बहुत दयापालें तथा तपस्यादि धर्मकार्य करें तोभी अज्ञान कष्ट (काय क्लेश) से हलकी जातिके देवादि होवे या कपट क्रियासे तिर्यंच योनिमें जावे तो सेठ साहूकार राजा बाबूके वहां घोड़े हाथी आदि होकर काय क्लेशका फल भोगकर संसारमें परिभ्रमण करते हैं, फिर बोधीबीज सम्यक्त्व जैनधर्म मिलना बहुत मुश्किल होता है, इसलिये शास्त्रोंमें कहाहै कि “सम्मत्तं उछिदिय, मिच्छत्तारोवणं कुणइ निय कुलस्स ॥ तेण सयलो वि वंसो, कुगइ मुह संमुहो नीओ॥१॥उस्सुत्त भासगाणं, बोहिणासो अणंत संसारो पाणचए वि धीरा, उस्सुत्त तो नभासंति ॥२॥ उस्सुत्तमाचरंतो, बंधइकम्मं सुचिक्कणो जीवो ॥ संसारं च पवढूई, माया मोसं च कुवई ॥ ३ ॥ उम्मगदेसओ, मग्गनासओ गुढहियय माइलो॥ सढसीलो य ससल्लो, तिरियाउं बंधए जीवो ॥ ४॥ उम्मग देसणाए, चरणं नासंति जिणवरिंदाणं " ॥ इत्यादि
SR No.032020
Book TitleAgamanusar Muhpatti Ka Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherKota Jain Shwetambar Sangh
Publication Year1927
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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