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________________ परिशिष्ट पर्व. तीसरा शिवकी आकांक्षावाले 'शिवकुमार' पुत्रसे दुःखित होकर राजाने दृढधर्मा नामा एक श्रेष्ठिपुत्रको बुलवाया और उसे पूर्वोक्त - त्तान्त सुनाके कहा कि हे वत्स! इसके मौन धारणसे हम बड़े दुखी होरहे हैं क्योंकि न तो यह कुछ खाता न पीता अत एव हे वत्स! तू कोई ऐसा उपाय कर जिससे 'शिवकुमार' अन्न, जल ग्रहण करे और किसी तरह संसारमें रहकर हमारे मनोरथोंको पूर्ण करे । यह कार्य करनेपर हम तेरा ऐशान ताजिन्दगी तक न भूलेंगे। __ . बुद्धिमान 'दृढधर्मा' ने भी राजाकी आज्ञा अंगीकार करली और 'शिवकुमार' के पास जाकर ३ वार नैषेधकी (निस्सीही) कहकर तथा क्रमसे ऐपिथिकी (इर्यावही) करके शिवकुमारको द्वादशावर्त वन्दनपूर्वक नमस्कार कर भूमिको प्रमाजन करके आपकी आज्ञा हो यह कहकर 'दृढधर्मा' 'शिवकुमार के सामने बैठ गया । दृढधर्माकी यह सब कार्रवाई देखकर 'शिवकुमार से न रहा गया अत एव वह बोला कि हे श्रेष्ठिपुत्र! यह विनय तो साधुमहात्माओंकोही योग्य है तुमने जो यह विनय मेरे प्रति किया है यह सर्वथा अनुचित है यदि तुमसे जान कारभी ऐसा अनुचित कार्य करेंगे तो अन्यजनोंका तो कहनाही क्या? यह सुनकर 'दृढधर्मा' बोला कोई भी सम्यग्दृष्टिजीव समभावमें वर्तता हो वह सर्व विनयके योग्य होता है, यथा-यस्य कस्यापि हि स्वान्तं समभावाधि वासितम् । स वन्दनार्हो भवति दोषाशंकापि नेह भोः ॥१॥ यह कहकर 'दृढधर्मा' बोला हे कुमार! आपने भोजनका त्याग क्यों किया? मैं यही पूछनेके लिए आया हूँ । 'शिवकु
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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