SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिच्छेद.) भवदत्त और भवदेव. जंबुद्वीपके भरतक्षेत्रमें मगध नामका देश है उस देशमें "सुग्राम" नामका एक गाँव है उस गाँवमें 'आर्यवानराष्ट्रकूट' इस नामका एक ग्रामीण रहता था 'रवती' नामकी उसकी पत्नी थी 'रवती' को अपने पतिके साथ संसार संबंधि सुख भोगते हुए दो लड़के पैदा हुवे, बड़े लड़केका नाम 'भवदत्त' और छोटेका नाम 'भवदेव' था । दोनोंही लड़के स्वभावसे बड़े सुशील थे उनमेंसे 'भवदत्त' ने तो योबन अवस्थाके प्राप्त होते समयही 'मुस्थिताचार्य महाराजके पास भवांभोधिको तारनेमें तरीके समान प्रवजा (दीक्षा) ग्रहण कर ली और विनयपूर्वक गुरुमहाराजके पास विद्याध्ययन करने लगा । 'भवदत्त' प्रज्ञावान होनेसे तथा गुरुमहाराजकी 'कृपा' होनेसे थोड़ेही समयमें श्रुत पारग होगया और अनेक प्रकारकी तपस्यायें तथा अभिग्रह धारण करता हुआ गुरुमहाराजके साथ विचरता है, आचार्यमहाराजके साथ औरभी बहुतसे साधु थे एक दिन एक साधुने आचार्यमहाराजसे यह प्रार्थना की कि हे भगवन् ! इस गाँवमें मेरे कुटंबी जन रहते हैं और उनमें मेरा एक छोटा भाई है वह मेरे ऊपर बढ़ाही स्नेहवाला है और प्रकृतिसेभी बड़ा भद्रिक है इसलिए आप कृपा कर मुझे आज्ञा देवें तो मैं वहां जाकर उसे बोध करके संसारचक्रमेंसे निकाल लाऊँ । गुरुमहाराज उस शिष्यकी प्रशस्तभाधना देखकर बड़े प्रसन्न हुए और एक बड़ा साधु उसके साथ करके उसे गाँवमें जानेकी आज्ञा दे दी, अब वह मुनिभी गुरुमहाराजकी आज्ञा पा. कर बड़े हर्षके साथ अपने भाईको प्रतिबोध करनेके लिए नगस्को चल पड़ा, मगर वहां जाकर देखता है तो छोटे भाईका विवाह होरहा है, अनेक प्रकारके धवलमंगल होरहे हैं और भाईमक कामदेवके सहोदर लपमें मज होरहा है, कोई सहि उसके हाथमें
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy