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________________ ३०. परिशिष्ट पर्व. [दूसरा कंगना बाँधती है और कोई पीठी मसल रही है । इस प्रकारके विवाहोत्सवमें मग्न होकर उसने दीक्षा लेनी तो दूर रही परंतु अपने बड़े भाईका स्वागत तकभी न किया और ऐसा होगया कि मानो भाईको जानताभी नहीं । इस प्रकार की आचरणायें देखकर मुनिराज साश्चर्य भनोत्साह होकर वापस चला आया और गुरुमहाराजके पास आकर सर्व वृत्तान्त सुना दिया । उस वक्त भवदत्त मुनि बोला कि अहो! ऐसा निःस्नेह होगया तुमारा भाई ? जिसने कि तुमारा बड़े भाईका घरपर जानेपरभी आदर सत्कार न किया, क्या गुरुओंकी भक्तिसेभी विवाहोत्सवका कौतुक अधिक श्रेयस्कर है ? जो उस उत्सवको त्याग कर अपने बड़े भाईके साथ न आया । 'भवदत्त की इस बातको काट कर उनमें से एक साधु बोला कि हे भवदत्त ! तुम तो पंडित हो भई तुम्हारी क्या बात है खैर तुमारेभी एक छोटा भाई है यदि तुम उसे दीक्षा दिवाओगे तो हमभी देखेंगे । यह सुनकर 'भवदत्त' बोला कि हाँ यदि गुरुमहाराज मगध देशमें पधारेंगे तो यह कौतुक मैं तुम्हें दिखाऊँगा । दैवयोग गुरुमहाराज विहार करते हुए किसी दिन मगध देशमें पधारे क्योंकि जैनमुनियों की स्थिति वायुके समान एकत्र नहीं होती। एक दिन 'भवदत्त' गुरुमहाराजको नमस्कार कर हाथ जोड़कर बोला कि भगवन् ! यहांसे थोड़ी दूरके फासलेपर मेरी जन्मभूमिका गाँव है यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं अपने स्वजनोंसे मिल आऊँ । गुरुमहाराजने 'भवदत्त' को श्रुतपारग जानकर उसे एकलेही जानेकी आज्ञा दे दी । गुरुमहाराजकी आज्ञा प्राप्त करके 'भवदत्त' अपने सांसारिक खजनोंके घर अपने छोटे भाई ‘भवदेव' को प्रतिबोध करनेके लिए गया, परंतु वहां जाकर देखता है तो पूर्वकेसीही गरबड़
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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