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________________ परिशिष्ट पर्व. . [पहला मुद्र भगवान श्रीमहावीरस्वामी बोले हे राजन् ! यदि प्रसनचंद्र राजर्षि उस वक्त काल करता तो सातवीं नरकमें जाता, यह सुनकर श्रमणोपासक राजा सरल बुद्धिवाला मनमें विचार करने लगा कि अहो ऐसा उग्र तप करनेवाले महामुनिकी यह क्या गति ? यह विचार करके फिरसे हाथ जोड़कर राजा पूछने लगा कि हे भगवन् ! यदि इस वक्त काल धर्मको प्राप्त हो तो कौनसी गतिमें जावे? भगवान बोले हे राजन् ! यदि इस समय काल करे तो सर्वार्थ सिद्धिके योग्य है याने २६ वे देवलोकमें जावे । साश्चर्य राजा कहने लगाकि हे प्रभो! सर्वज्ञकी बाणी दो प्रकारकी क्यों ? आप कृपा कर मुझ अनभिज्ञको इस बातको समज्ञाइये। भगवान श्रीमहावीरस्वामी बोले कि राजन् ! जिस वक्त तुमने उस मुनिको वन्दन किया था उस वक्त वह रौद्र ध्यानपरायण था अत एव यदि उस वक्त काल करता तो सातवीं नरक में जाता, मगर अब शुकुध्यानारुढ़ है इसलिए यदि अब काल करे तो सर्वार्थ सिद्धिके योग्य है, भगवानश्री महावीरस्वामीके मुखारविंदसे यह बात सुनकर विनयसे नम्र हुआ हुआ "राजा श्रेणिक" पुनः हाथ जोड़कर वोला कि हे भगवन् ! इस प्रकारकी तपस्या करते हुए उस मुनिको रौद्र ध्यान कैसे हुआ ? और इस वक्त शुल्क ध्यान कैसे आया ? । केवल ज्ञानसे चराचर सर्व पदार्थोंको और सर्व जीवोंके मनोगत भावोंको जाननेवाले भगवानश्री महावीरस्वामी अपनी अमृतमय वाणीसे संसार दावानलसे तपे हुए जीवोंको शान्त करते हुए बोले कि राजन् ! जिस वक्त तुम हमको वन्दन करनेको आ रहेथे उस वक्त जो तुमारे आगे दो सेनापति थे उनके मुखसे अपने पुत्रका पराभव सुना अत एव पुत्रके मोहसे समाधि ध्यानसे पतित होकर साधुपनेको भूल
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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