SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिच्छेद . ] प्रसन्नचंद्र राजर्षि और बल्कळचीरी. -सुनकर प्रसन्नचंद्र राजर्षि अपने मनमें विचार करने लगा कि अहो उन दुरात्मा मंत्रियोंका सत्कार किया हुआ सर्पको दूध पिलानेके समानही हुआ जो कि वे विश्वासघातक पापात्मा मेरे लड़केको मारके राज्य लेनेकी तैयारी करते हैं, यदि मैं इस वक्त वहां होता तो उन पापियोंको ऐसी शिक्षा देता कि जिसे सारी जिंदगी याद रखते, अब मेरे जीनेसेभी क्या और इस दुष्कर तपसेभी क्या जो मैं अपने लड़केका पराभव जीते हुए देख रहा हूँ, इसतरह प्रसन्नचंद्र राजर्षि समाधिले च्युत होकर अपने साधुपनेको भूल गया और क्रोधके वश होकर अधिकाधिक दुर्ध्वानमें प्रवृत्त होगया, सिंहावलोकन न्यायसे उन अपने पुत्र के शत्रुमंत्र* योंको साक्षात देखकर उनके साथ मनही मनमें युद्ध करता हुआ अनेक प्रकारके रणसंबंधि छेदनभेदन करने लगा, इतनेमेंही अपनी सेनासाथ मगधाधिपति " श्रेणिक " राजा वहांपर आ - पहुँचा और उस मुनिको एक पाँवसे खड़े देख तथा दोनों भुजा- ऊपर को उठाये हुए और सूर्यके सामने निष्कंप दृष्टि लगाये देखकर अपने हाथीसे नीचे उतरके बड़ी भक्तिपूर्वक पंचांग नमस्कार किया, और उस मुनिको वैसी अवस्थामें स्थिर देखकर सहर्ष उसके तपकी प्रशंसा करता हुआ वहांसे आगे बढ़ा और थोड़ी ही देर में जो भगवान महावीरस्वामी के चरणारविंदोंसे पवित्र • उद्यान था, वहां जा पहुँचा और जगत्प्रभुको (पंचाभिगम) पूर्वक भक्तिसे वन्दन करके यथायोग्य स्थानपर बैठ गया, अवसर पा कर " श्रेणिक राजाने " भगवान श्रीमहावीरस्वामीसे विनयपूर्वक हाथ जोड़कर पूछा कि हे भगवन् ! रस्तेमें ध्यानारूढ़ श्री प्रसन्न - चंद्र राजर्षिको जिस वक्त मैंने वन्दन किया यदि उस वक्त उनकी "मृत्यु होती तो वे किसगतिको माप्त होते ? उस वक्त करुणाके स
SR No.032011
Book TitleParishisht Parv Yane Aetihasik Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1917
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy