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________________ ७८ ......- गाथा समयसार इस ही तरह चोरी असत्य कुशील एवं ग्रंथ में। जो हुए अध्यवसान हों वे पाप का बंधन करें। इस ही तरह अचौर्य सत्य सुशील और अग्रंथ में। जो हुए अध्यवसान हों वे पुण्य का बंधन करें। . जिसप्रकार हिंसा-अहिंसा के संदर्भ में कहा गया है; उसीप्रकार असत्य, चोरी, अब्रह्मचर्य और परिग्रह के संदर्भ में जो अध्यवसान किये जाते हैं; उनसे पाप का बंध होता है और सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के संदर्भ में जो अध्यवसान किये जाते हैं; उनसे पुण्य का बंध होता है। (२६५) वत्थु पडुच्च जं पुण अज्झवसाणं तु होदि जीवाणं। ण य वत्थुदो दु बंधो अज्झवसाणेण बंधोत्थि। ये भाव अध्यवसान होते वस्तु के अवलम्ब से। पर वस्तु से ना बंध हो हो बंध अध्यवसान से। जीवों के जो अध्यवसान होते हैं; वे वस्तु के अवलम्बनपूर्वक ही होते हैं; तथापि वस्तु से बंध नहीं होता, अध्यवसान से ही बंध होता है। (२६६-२६७) दुक्खिदसुहिदे जीवे करेमि बंधेमि तह विमोचेमि । जा एसा मूढमदी णिरत्थया सा हु दे मिच्छा।। अज्झवसाणणिमित्तं जीवा बझंति कम्मणा जदि हि । मुच्चंति मोक्खमग्गे ठिदा य ता किं करेसि तुमं ।। मैं सुरखी करता दुःखी करता बाँधता या छोड़ता। यह मान्यता हे मूढ़मति मिथ्या निरर्थक जानना ।। जिय बँधे अध्यवसान से शिवपथ-गमन से छूटते। गहराई से सोचो जरा पर में तुम्हारा क्या चले ? |
SR No.032006
Book TitleGatha Samaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2009
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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