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________________ अर्थात् जिस नाम से कुल पहिचाना जावे वा जिस मूल पुरुष से कुलपरंपरा चली हो वह गोत्र होता है। यह गोत्र परंपरा लगभग दो हजार वर्ष से प्रचलित कही जाती है। ब्राम्हणों में यह अद्यावधी चल रही है। संध्या वंदनादि हरएक धर्मकृत्य में अहर्निश गोत्रोच्चारण किया जाता है। ब्राम्हणों के अनुसार क्षत्रिय वैश्यों को भी गोत्र थे, क्यों कि ये भी स्वतंत्र झातियां हैं। हरिवंश, इक्ष्वाकुवंश, रघुवंश कुरुवंश, यदुवंश, आदि; परंतु अब यह गोत्र परंपरा वैश्य क्षत्रियों में बहुत कम प्रचार में है । श्री महावीर स्वामी तथा गौतम बुद्ध के समय के बृहत् धर्म विप्लव में क्षत्रिय वैश्यों की प्राचिन गोत्र परंपरा नष्ट होकर नयी जैन साधु प्रणित गोत्र परंपरा प्रचलित हुई। यों तो “ गुजरात में गोत नहीं मारवाड में छोत नहीं" परंतु हिंदु-धर्म के देखा देखी जैन गुरुओंने नव दिक्षित जैनों में गोत्र परंपरा चालू की । इसमें न तो कोई नियम पालन हुआ है और न कोई कुल परंपरा को स्थान दिया गया है। गुरुओंने मनगढंत उटपटांग गोत्र निश्चित कर दिये हैं। उदाहरण के लिये दो चार गोत्रों की उत्पत्ति दी जाती है। ___मंडोवर के राजा का कुष्ट रोग श्री जिनदत्त सूरिने गाय का मक्खन लगवाकर ठीक किया तब राजा के साथ शर्त की गई थी कि रोगनाश होने के पश्चात् जैन-धर्मका अंगिकार करना होगा । उक्त शर्त के अनुसार राजा जैन हुआ। जिस गाय का मक्खम उसके शरीर को लगाया गया उसका नाम कुकडी था
SR No.032004
Book TitlePorwar Mahajano Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakur Lakshmansinh Choudhary
PublisherThakur Lakshmansinh Choudhary
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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